Hanuman Tandav Stotram : हनुमान तांडव स्तोत्र 11 मंगलवार लगातार पढ़ने अथवा सुनने मात्र से बजरंगबली हर संकट में स्वयं होंगे सहायक

Hanuman Tandav Stotra 11 Tuesdays By just reading or listening to it continuously, Bajrangbali himself will help in every crisis

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  • Publish Date - January 10, 2025 / 03:50 PM IST,
    Updated On - January 10, 2025 / 03:50 PM IST

Hanuman Tandav Stotram : हनुमान तांडव स्तोत्र, हनुमान जी का अत्यंत शक्तिशाली एवं दुर्लभ स्तोत्र है। प्रत्येक मंगलवार के दिन हनुमान तांडव स्तोत्र का पाठ करने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है अथवा कष्टों से छुटकारा मिलता है साथ ही साथ बल, बुद्धि और विद्या की प्राप्ति होती है। इसका पाठ सही उच्चारण के साथ करना चाहिए। 11 मंगलवार लगातार इस पाठ का उच्चारण करने वाले साधक को बजरंगबली की विशेष कृपा प्राप्त होती है और कठिन से कठिन मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।

Hanuman Tandav Stotram : आईये यहाँ प्रस्तुत है श्री हनुमान तांडव स्तोत्र

|| श्रीहनुमत्ताण्डवस्तोत्रम् ||

श्लोक 1:
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्। रक्ताङ्गरागशोभाढयं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥
अर्थ: मैं उस हनुमान जी की पूजा करता हूँ जिनका रंग सिंदूर जैसा है, जिन्होंने लाल वस्त्र पहना हुआ है, जिनके शरीर पर लाल रंग की आभा है, और जिनकी पूंछ भी लाल है। वे वानरों के राजा हैं।

श्लोक 2:
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्। सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्॥
अर्थ: मैं पवनपुत्र हनुमान जी की वंदना करता हूँ, जो भक्तों के हृदय को आनंदित करते हैं, जिन्होंने सूर्य को निगल लिया था, जो सभी भक्तों की रक्षा करते हैं। वे कठिन कार्यों को आसानी से सिद्ध करते हैं, शत्रुओं को परास्त करते हैं, और समुद्र पार करने वाले हैं। मैं उन सिद्धियों की इच्छा रखने वाले हनुमान जी को प्रणाम करता हूँ।

Hanuman Tandav Stotram

श्लोक 3:
सुश‌ङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न। इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः॥
अर्थ: जो भी उचित और हितकारी शब्द बोलते हैं, वे धैर्यपूर्वक उनका पालन करते हैं। जब वानरराज हनुमान जी ने यह सुना, तो वे तुरंत शांत हो गए और प्रभु श्रीराम के दूत के रूप में कार्य करते हुए सबके लिए शरणदाता बन गए।

श्लोक 4:
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ। कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम्॥
अर्थ: हनुमान जी, जिनकी लंबी बाहें और चमकदार आँखें हैं, जिनकी पूंछ सुंदर है और जिन्होंने श्रीराम और लक्ष्मण को अपने कंधों पर धारण किया हुआ है, कोसल के राजा श्रीराम के सेवक और वानरराज सुग्रीव के निकट रहते हैं। वे हमें शिव का आशीर्वाद प्रदान करें।

Hanuman Tandav Stotram

श्लोक 5:
सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्। प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः॥
अर्थ:रामचंद्र जी ने हनुमान जी को देखा, जो सुशब्द शास्त्रों के पारंगत हैं और वानरराज के सेवक हैं। वे नीति के मार्ग को जानते हैं और हमेशा अपने कार्य को सिद्ध करते हैं। उन्होंने लक्ष्मण के प्रति अपनी भुजाओं से स्नेह और मित्रता का प्रदर्शन किया और अपने कार्य को सफल बनाया।

श्लोक 6:
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृदृशास्यवासनाशकृत्। विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्॥
अर्थ: जो प्रचंड वेग वाले हैं, जिन्होंने पर्वतों के गर्व को नष्ट किया, और नागों के गर्व को हराया। विभीषण के मित्र बनने वाले और विदेह की बेटी सीता के दुख को हरने वाले हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ।

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श्लोक 7:
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्। सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्॥
अर्थ: मैं पुष्पमाला से सुशोभित, सुवर्णवर्ण धारण करने वाले, गदा और किरीट-कुंडलों से अलंकृत हनुमान जी को प्रणाम करता हूँ। जिन्होंने अपनी पूंछ से लंका को जलाया और राक्षसों के पूरे कुल का नाश किया।

श्लोक 8:
रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम्। विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्॥
अर्थ: जो रघुकुल के श्रेष्ठ राम के सेवक हैं, लक्ष्मण के प्रिय हैं, जिन्होंने श्रीराम की अंगूठी सीता जी को सौंपी, और विदेह की बेटी सीता के शोक को हरने वाले हैं, ऐसे हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ।

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श्लोक 9:
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासाहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः। सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्॥
अर्थ: पवनपुत्र हनुमान जी ने अपनी महान शक्ति से श्रीराम और सीता जी के कार्यों को सिद्ध किया। उन्होंने वालि का नाश किया और रावण को भी परास्त किया।

फल श्रुति:
इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः। प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह॥
अर्थ: जो भी इस हनुमान तांडव स्तोत्र को प्रतिदिन ध्यानपूर्वक पढ़ता है, उसे वानरराज हनुमान की कृपा प्राप्त होती है। वह सभी संपत्तियों का भोग करता है, और उसे कभी भी शत्रुओं से भय नहीं होता।

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