Gayatri Chalisa : गायत्री चालीसा पाठ का धार्मिक महत्व है क्योंकि यह व्यक्ति को भगवान की कृपा, आशीर्वाद, और आत्मिक उन्नति की प्राप्ति में सहायक होता है. इस पाठ को नियमित रूप से करने से व्यक्ति का जीवन संपन्न, सफल और धार्मिक दृष्टि से समृद्ध होता है। धार्मिक लाभ: गायत्री चालीसा का पाठ करने से ज्ञान और बुद्धि में वृद्धि होती है। गायत्री मॉं को सरस्वती, लक्ष्मी और काली का रुप भी गायत्री चालीसा में बताया गया है। इस चालीसा के जाप से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
Gayatri Chalisa : गायत्री चालीसा एवं गायत्री मंत्र का जाप करते वक़्त कुछ बातें हमें ध्यान में रखनी चाहियें
गायत्री मंत्र का जाप करते समय आपका मुंह कभी भी दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए। पूर्व दिशा की ओर मुंह करके जाप करना उत्तम माना जाता है। मांस, मछली या मदिरा पान का सेवन करने के बाद कभी भी गायत्री मंत्र का जाप ना करें। ऐसा करने वालों को जीवन में बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
गायत्री मंत्र को दुनिया का सबसे प्रभावी मंत्र बताया गया है और इसे महामंत्र का दर्जा दिया गया है।
गायत्री मंत्र – ‘ॐ भूर्भव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। ‘ इस महामंत्र का अर्थ- ‘उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
Gayatri Chalisa : गायत्री चालीसा से होने वाले लाभ
– इस चालीसा के जाप करने से मन में ज्ञान का प्रकाश फैल जाता है।
– अगर आप इसका नियमित पाठ करें तो आपके जीवन से आलस्य, पाप और अज्ञानता का नाश हो जाता है।
– गायत्री चालीसा के पाठ से भक्तों को भय से भी मुक्ति मिलती है।
– गायत्री चालीसा के अनुसार मॉं गायत्री संसार में ज्ञान-विज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान को प्रज्वलित करने वाली हैं इसलिए गायत्री चालीसा के जाप से जिज्ञासुओं को बहुत अच्छे फलों की प्राप्ति होती है।
– गायत्री मंत्र के जाप से रोगियों को रोग से मुक्ति मिलती है और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
– निसंतान दंपत्तियों को चालीसा के जाप से संतान की प्राप्ति होती है।
– गायत्री चालीसा का पाठ आपके मन में शांति लाता है।
Gayatri Chalisa : गायत्री चालीसा पाठ की विधि
किसी भी देवी देवता की पूजा से पहले उन्हें प्रसन्न करने की पूजा विधि के बारे में भी बताया जाता है। हालांकि विधि का अनुसरण करने के साथ-साथ जो सबसे ज़रुरी चीज है वो है स्वच्छता। मॉं गायत्री को प्रसन्न करने से पूर्व भी आपको अपने तन और मन को स्वच्छ रखना चाहिए इससे आपको अच्छे फलों की प्राप्ति अवश्य होगी। इसके साथ ही यदि आप नीचे दी गई पाठ विधि का अनुसरण करते हुए माता की चालीसा का पाठ करते हैं तो आपकी मनोकामनाएं ज़रूर पूरी हो सकती हैं।
गायत्री चालीसा का पाठ करना सुबह के समय सबसे शुभ होता है।
इसके लिए माता की प्रतिमा या तस्वीर पूजा स्थल पर रखें।
चालीसा का पाठ शुरु करने से पहले स्नान-ध्यान करना चाहिए और उसके बाद पूजा स्थल के पास आसन बिछाना चाहिए। आसन श्वेत रंग का ही हो तो बेहतर होगा।
इसके बाद धूप-दीप और फूल माता को अर्पित करें।
इसके बाद श्रद्धा-पूर्वक गायत्री चालीसा का पाठ करें।
गायत्री चालीसा के पाठ के दौरान आस-पास जितनी शांति हो उतना बेहतर होता है।
Gayatri Chalisa : आईये पढ़ें गायत्री चालीसा
मां गायत्री चालीसा
ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचंड ॥
शांति कांति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखंड ॥1॥
जगत जननी मंगल करनि गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम ॥2॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥॥
अक्षर चौबीस परम पुनीता ।
इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता ॥॥
शाश्वत सतोगुणी सत रूपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥॥
हंसारूढ श्वेतांबर धारी ।
स्वर्ण कांति शुचि गगन-बिहारी ॥॥
पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥॥
ध्यान धरत पुलकित हित होई ।
सुख उपजत दुख दुर्मति खोई ॥॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अद्भुत माया ॥॥
तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।
तरै सकल संकट सों सोई ॥॥
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सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥॥
तुम्हरी महिमा पार न पावैं ।
जो शारद शत मुख गुन गावैं ॥॥
चार वेद की मात पुनीता ।
तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ॥॥
महामंत्र जितने जग माहीं ।
कोउ गायत्री सम नाहीं ॥॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।
आलस पाप अविद्या नासै ॥॥
सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।
कालरात्रि वरदा कल्याणी ॥॥
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
तुम सों पावें सुरता तेते ॥॥
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥॥
महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जय जय जय त्रिपदा भयहारी ॥॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।
तुम सम अधिक न जगमें आना ॥॥
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेसा ॥॥
जानत तुमहिं तुमहिं व्है जाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।
माता तुम सब ठौर समाई ॥॥
ग्रह नक्षत्र ब्रह्मांड घनेरे ।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥॥
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सकल सृष्टि की प्राण विधाता ।
पालक पोषक नाशक त्राता ॥॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तरे पातकी भारी ॥॥
जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई ॥॥
मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें ।
रोगी रोग रहित हो जावें ॥॥
दरिद्र मिटै कटै सब पीरा ।
नाशै दुख हरै भव भीरा ॥॥
गृह क्लेश चित चिंता भारी ।
नासै गायत्री भय हारी ॥॥
संतति हीन सुसंतति पावें ।
सुख संपति युत मोद मनावें ॥॥
भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहिं आवें ॥॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई ।
अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥॥
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।
विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥॥
जयति जयति जगदंब भवानी ।
तुम सम ओर दयालु न दानी ॥॥
जो सतगुरु सो दीक्षा पावे ।
सो साधन को सफल बनावे ॥॥
सुमिरन करे सुरूचि बडभागी ।
लहै मनोरथ गृही विरागी ॥॥
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥॥
ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी ।
आरत अर्थी चिंतित भोगी ॥॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें ।
सो सो मन वांछित फल पावें ॥॥
बल बुधि विद्या शील स्वभाउ ।
धन वैभव यश तेज उछाउ ॥॥
सकल बढें उपजें सुख नाना ।
जे यह पाठ करै धरि ध्याना ॥
दोहा
यह चालीसा भक्ति युत पाठ करै जो कोई ।
तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय ॥
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