Dwadash Jyotirling Stotram in hindi : हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रकट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है। हिंदुओं में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल उठकर इन बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम का पाठ करता है, उसके सभी प्रकार के पाप छूट जाते हैं और उसको संपूर्ण सिद्धियों का फल प्राप्त हो जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों को संबोधित एक स्रोत है। इस स्तोत्र का प्रतिदिन जाप करने से बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने के समान फल की प्राप्ति होती है। भगवान शिव जी को समर्पित यह स्त्रोत बहुत ही फलदायी होता है। जो भी भक्त इस स्त्रोत का नियमित पाठ करता है उस पर शिव जी की कृपा बनी रहती है। शिवपुराण के मुताबिक, ज्योति के रूप में भगवान शिव स्वयं यहां विराजित रहते हैं। सावन के महीने में जो भी व्यक्ति भगवान के इस स्त्रोत का पाठ करता है। उसके सभी बिगड़े काम बनने लग जाते है। नियमित रूप से इस स्त्रोत का पाठ करने से जीवन में सुख समृद्धि आती है। साधक को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
Dwadash Jyotirling Stotram in hindi : द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम् का हिंदी अर्थ
आईये पढ़ते हैं द्वादशज्योतिर्लिंगस्तोत्रम्
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये
ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं
तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।।1।।
श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे
तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं
नमामि संसारसमुद्रसेतुम्।।2।।
अवन्तिकायां विहितावतारं
मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं
वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।3।।
जो अपनी भक्ति प्रदान करने के लिए अत्यंत रमणीय तथा निर्मल सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में दयापूर्वक अवतरित हुए हैं, चंद्रमा जिनके मस्तक का आभूषण है, उन ज्योतिर्लिंगस्वरूप भगवान श्री सोमनाथ की शरण में मैं जाता हूं।।1।।
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जो ऊंचाई के आदर्शभूत पर्वतों से भी बढ़कर ऊंचे श्री शैल के शिखर पर, जहां देवताओं का अत्यन्त समागम होता रहता है, प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं तथा जो संसार-सागर से पार कराने के लिए पुल के समान हैं, उन एकमात्र प्रभु मल्लिकार्जुन को मैं नमस्कार करता हूं।।2।।
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संतजनों को मोक्ष देने के लिए जिन्होंने अवन्तिपुरी (वर्तमान में उज्जैन) में अवतार धारण किया है, उन महाकाल नाम से विख्यात महादेवजी को मैं अकाल मृत्यु से बचने के लिए प्रणाम करता हूं।।3।।
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Dwadash Jyotirling Stotram in hindi
कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे
समागमे सज्जनतारणाय।
सदैवमान्धातृपुरे वसन्त
मोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे।।4।।
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने
सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मं
श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि।।5।।
याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये
विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं
श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये।।6।।
जो सत्पुरुषों को संसार-सागर से पार उतारने के लिए कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम के निकट मान्धाता के पुर में सदा निवास करते हैं, उन अद्वितीय कल्याणमय भगवान ॐकारेश्वर का मैं स्तवन करता हूं।।4।।
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जो पूर्वोत्तर दिशा में चिताभूमि (वर्तमान में वैद्यनाथ धाम) के भीतर सदा ही गिरिजा के साथ वास करते हैं, देवता और असुर जिनके चरण कमलों की आराधना करते हैं, उन श्री वैद्यनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।।5।।
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जो दक्षिण के अत्यन्त रमणीय सदंग नगर में विविध भोगों से संपन्न होकर आभूषणों से भूषित हो रहे हैं, जो एकमात्र सद्भक्ति और मुक्ति को देने वाले हैं, उन प्रभु श्रीनागनाथजी की मैं शरण में जाता हूं।।6।।
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Dwadash Jyotirling Stotram in hindi
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं
सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै:
केदारमीशं शिवमेकमीडे।।7।।
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं
गोदावरीतीरपवित्रदेशे।
यद्दर्शनात् पातकमाशु नाशं
प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे।।8।।
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे
निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं
रामेश्वराख्यं नियतं नमामि।।9।।
यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे
निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं
तं शङ्करं भक्तहितं नमामि।।10।।
जो महागिरि हिमालय के पास केदारश्रृंग के तट पर सदा निवास करते हुए मुनीश्वरों द्वारा पूजित होते हैं तथा देवता, असुर, यक्ष और महान सर्प आदि भी जिनकी पूजा करते हैं, उन एक कल्याणकारक भगवान केदारनाथ का मैं स्तवन करता हूं।।7।।
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जो गोदावरी तट के पवित्र देश में सह्य पर्वत के विमल शिखर पर वास करते हैं, जिनके दर्शन से तुरन्त ही पातक नष्ट हो जाता है, उन श्री त्र्यम्बकेश्वर का मैं स्तवन करता हूं।।8।।
——
जो भगवान श्री रामचन्द्रजी के द्वारा ताम्रपर्णी और सागर के संगम में अनेक बाणों द्वारा पुल बांधकर स्थापित किए गए हैं, उन श्री रामेश्वर को मैं नियम से प्रणाम करता हूं।।9।।
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जो डाकिनी और शाकिनी वृन्द में प्रेतों द्वारा सदैव सेवित होते हैं, उन भक्ति हितकारी भगवान भीमशंकर को मैं प्रणाम करता हूं।।10।।
Dwadash Jyotirling Stotram in hindi
सानन्दमानन्दवने वसन्त-
मानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।
वाराणसीनाथमनाथनाथं
श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये।।11।।
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन्
समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
वन्दे महोदारतरस्वभावं
घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये।।12।।
ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां
शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या
फलं तदालोक्य निजं भजेच्च।।13।।
जो स्वयं आनंद कन्द हैं और आनंदपूर्वक आनन्द वन (काशी क्षेत्र) में वास करते हैं, जो पाप समूह के नाश करने वाले हैं, उन अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की शरण में मैं जाता हूं।।11।।
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जो इलापुर के सुरम्य मंदिर में विराजमान होकर समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं, जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है, उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान शिव की शरण में मैं जाता हूं।।12।।
——
यदि मनुष्य क्रमश: कहे गए इन द्वादश ज्योतिर्मय शिवलिंगों के स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करे तो इनके दर्शन से होने वाला फल प्राप्त कर सकता है।।13।।
।।इति श्रीमच्छंकराचार्य विरचितं द्वादश ज्योतिर्लिङ्गस्तोत्रं संपूर्णम्।।
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