Sita was the daughter of Ravana : रामायण में कई महत्वपूर्ण पात्र है। जिनमें से राम-सीता प्रमुख है। लंकेश जितना बडा असुर था उतना ही ज्ञानी था। जिसे सभी वेद-पुराणों का ज्ञान था। रावण के बारे कई रहस्य ऐसे है जो अभी तक उजागर नहीं हुए है। वहीं देवी सीता की भक्ति तो पूरे जगत में पूज्यनीय है। देवी सीता की महिमा ऐसी है कि राम से पहले देवी सीता का नाम लिया जाता है। देवी सीता को लक्ष्मी का अवतार माना जाता है लेकिन विभिन्न रामायणों और पौराणिक कथाओं में देवी सीता के जन्म को लेकर रहस्यमयी और रोचक कथाएं हैं। इसकी वजह यह है कि देवी सीता के माता पिता भले ही सुनयना और राजा जनक कहलाते हैं लेकिन यह केवल इनके पालक माता-पिता हैं। इनका जन्म भूमि से हुआ है इसलिए इनके जन्म के संदर्भ में कई कथाएं मिलती हैं। इनमें सबसे प्रचलित कथा वाल्मीकि रामायण की है।>>*IBC24 News Channel के WHATSAPP ग्रुप से जुड़ने के लिए यहां CLICK करें*<<
Sita was the daughter of Ravana : महर्षि वाल्मीकि ने अपने रामायण में लिखा है कि मिथिला राज्य में अकाल पड़ गया। ऋषियों ने राजा जनक से यज्ञ का आयोजन करने के लिए कहा ताकि वर्षा हो। यज्ञ की समाप्ति के अवसर पर राजा जनक अपने हाथों से हल लेकर खेत जोत रहे थे तभी उनके हल का नुकीला भाग जिसे सीत कहते हैं किसी कठोर चीज से टकराया और हल वहीं अटक गया। जब उस स्थान को खोदा गया तो एक कलश प्राप्त हुआ जिसमें एक सुंदर कन्या खेल रही थी। राजा जनक ने उस कन्या को कलश से निकाला और उस कन्या को अपनी पुत्री बनाकर अपने साथ ले गए। निःसंतान सुनयना और जनक की संतान की इच्छा पूरी हुए। हल के सीत के टकराने से वह कलश मिला था जिससे सीता प्रकट हुई थीं इसलिए कन्या का नाम सीता रखा गया।
Sita was the daughter of Ravana : देवी सीता से संबंधित एक अन्य कथा का उल्लेख अद्भुत रामायण में मिलता है। इस रामायण में लिखा है कि रावण ने कहा था कि जब उसके हृदय में अपनी पुत्री से विवाह की इच्छा उत्पन्न हो तो उसकी पुत्री ही उसकी मृत्यु का कारण बने। इस संदर्भ में कथा का विस्तार इस तरह मिलता है कि गृत्समद नाम के ऋषि देवी लक्ष्मी को पुत्री रूप में पाने के लिए हर दिन मंत्रोच्चार के साथ कुश के अग्र भाग से एक कलश में दूध की बूंदे डालते थे।
Sita was the daughter of Ravana : एक दिन जब ऋषि आश्रम में नहीं थे तब रावण वहां आ पहुंचा और वहां मौजूद ऋषियों को मारकर उनका रक्त कलश में भर लिया। इस कलश को रावण महल में लाकर छुपा दिया। मंदोदरी उस कलश को लेकर बहुत उत्सुक थी कि आखिर उसमें है क्या। एक दिन जब रावण महल में नहीं था तब चुपके से मंदोदरी ने उस कलश को खोलकर देखा। मंदोदरी कलश को उठाकर सारा रक्त पी गई जिससे वह गर्भवती हो गई। यह भेद किसी को पता ना चले इसलिए वह लंका से बहुत दूर अपनी पुत्री को कलश में छुपाकर मिथिला भूमि में छोड़ आई। इस तरह सीता को रावण की पुत्री बताया जाता है।
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