Dhanvantari Stotra : भगवान धन्वंतरि श्रीहरि विष्णु के 24 अवतारों में से 12वें अवतार माने गए हैं. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। समुद्रमंथन के समय चौदह प्रमुख रत्न निकले थे जिनमें चौदहवें रत्न के रूप में स्वयं भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुए जिनके हाथ में अमृतलश था पुराणों में उनका उल्लेख आयुर्वेद के देवता के रूप में किया गया है। भगवान धन्वंतरि की पूजा के दौरान ‘ॐ नमो भगवते धन्वंतराय विष्णुरूपाय नमो नमः’ का जाप करते रहें। इस मंत्र के उच्चारण से भगवान धन्वंतरि प्रसन्न होते हैं। बता दें कि धन्वंतरि जी की पूजा से शरीर में रोग नहीं आती और स्वास्थ्य संबंधी गंभीर परेशानी नहीं होती। दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरि का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वन्तरि जी की पूजा के पश्चात् विशेष आरती की जाती है धनतेरस के दिन धन्वंतरि स्तोत्र पढ़ना बहुत ही शुभ माना गया है इस अतिआवश्यक एवं कल्याणकारी स्तोत्र के बिना अधूरी है धनतेरस की पूजा। धनतेरस को भगवान धन्वंतरि की पूजा-अर्चना होती है।
Dhanvantari Stotra : आईये पढ़ते हैं भगवान धन्वंतरि स्तोत्र
शंखं चक्रं जलौकादधतम्-
अमृतघटम् चारूदौर्भिश्चतुर्भि:।
सूक्ष्म स्वच्छ अति-हृद्यम् शुक-
परि विलसन मौलिसंभोजनेत्रम्।।
कालांभोदोज्वलांगं कटितटविल-
स: चारूपीतांबराढ़यम्।
वंदे धन्वंतरीम् तम् निखिल
गदम् इवपौढदावाग्रिलीलम्।।
यो विश्वं विदधाति पाति-
सततं संहारयत्यंजसा।
सृष्ट्वा दिव्यमहोषधींश्च-
विविधान् दूरीकरोत्यायान्।।
विंभ्राणों जलिना चकास्ति-
भुवने पीयूषपूर्ण घटम्।
तं धन्वंतरीरूपम् इशम्-
अलम् वन्दामहे श्रेयसे।।
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Dhanvantari Stotra
– मंत्रं
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वंतरये अमृतकलशहस्ताय [वज्रजलौकहस्ताय] सर्वामयविनाशनाय त्रैलोक्यनाथाय श्रीमहाविष्णवे स्वाहा ।
– गायत्री मंत्रम्
ॐ वासुदेवाय विद्महे सुधाहस्ताय धीमहि ।
तन्नो धन्वंतरिः प्रचोदयात् ।
– तारकमंत्रम्
ॐ धं धन्वंतरये नमः ।
Dhanvantari Stotra
धन्वंतरि मंत्र के जाप के लाभ (Dhanvantari Mantra Benefits)
यह मंत्र मानसिक भय और सभी प्रकार के कष्टों को दूर कर सकता है, जिससे स्पष्ट दृष्टि को बढ़ावा मिलता है। इसके जाप से दिव्य ऊर्जाएं छूती हैं जो शरीर और मस्तिष्क पर काम करती हैं, और आत्मा को भी उपचारात्मक स्पर्श प्रदान करती हैं
Dhanvantari Stotra : धन्वंतरि जी की आरती (Dhanvantari Ji ki Aarti)
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय धन्वं.।।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए।।जय धन्वं.।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।जय धन्वं.।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।जय धन्वं.।।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।जय धन्वं.।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।जय धन्वं.।।
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।।जय धन्वं.।।
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