नई दिल्ली : Dev Deepawali 2022: आज यानी 7 नवंबर को देव दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के अवसर देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है। वैसे तो ये पर्व मुख्य रूप से काशी में मनाए जाने की परंपरा है, लेकिन इस दिन किसी भी नदी या तालाब में दीपदान किया जा सकता है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरों का नाश किया था, इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं।
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Dev Deepawali 2022: श्रीकाशी विद्वत परिषद के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा 7 नवंबर, सोमवार की दोपहर 3:58 से 8 नवंबर, मंगलवार की दोपहर 3:53 बजे तक रहेगी। 8 नवंबर को चंद्र ग्रहण होने के कारण इस दिन कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जा सकेगा। इसलिए 7 नवंबर, सोमवार को ही पूर्णिमा तिथि के संयोग में ये पर्व मनाया जाएगा। देव दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 05.14 से 07.49 तक है। पूजन की कुल अवधि 2 घंटे 32 मिनट की रहेगी।
Dev Deepawali 2022: – देव दीपावली पर नदी या तालाब के किनारे दीपदान करने की परंपरा है, अगर वहां तक न जा पाएं तो घर भी दीपदान कर सकते हैं।
– सबसे पहले दीपक में तिल का तिले डालें और इसे प्रज्वलित करें। इसके बाद कुमकुम और चावल लगाकर इसकी पूजा करें।
– दीपक के हाथ जोड़कर घर की सुख-समृद्धि के लिए कामना करें। दीपक को नदी में तालाब में इस प्रकार छोड़ें कि वह डूबे नही।
– अगर घर पर दीपदान कर रहे हों तो इस दीपक को मंदिर में रखे दें और भगवान से घर की खुशहाली के लिए प्रार्थना करें।
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Dev Deepawali 2022: शिवपुराण के अनुसार, दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे- तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली। इन तीनों ने ब्रह्माजी को प्रसन्न कर वरदान मांगा कि “हमारे पास ऐसे तीन नगर हो, जिसमें बैठकर पर आकाश मार्ग में घूमते रहें। एक हजार साल बाद जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।”
– ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था। ब्रह्माजी से वरदान पाकर इन तीनों असुरों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। तब सभी देवता भगवान शिव से सहायता मांगने गए।
– शिवजी के कहने पर विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया। हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा। भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, शिवजी दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया।
– त्रिपुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहते हैं। इसके बाद सभी देवता काशी आए और यहां आकर दीपक जलाए। तभी से काशी में देव दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है।