Chhath Puja Shubh Muhurat 2024: इस दिन मनाया जाएगा महापर्व छठ, जानें क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

Chhath Puja Shubh Muhurat 2024: इस दिन मनाया जाएगा महापर्व छठ, जानें क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

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  • Publish Date - November 2, 2024 / 04:42 PM IST,
    Updated On - November 2, 2024 / 04:42 PM IST

Chhath Puja Shubh Muhurat 2024: दिवाली का पर्व खत्म हो चुका है और अब कुछ दिनों बाद छठ पूजा शुरू होने वाली है। चार दिनों के छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खास के साथ होती है। जिसे बिहार में सबसे ज्यादा मान्यता दी जाती है। इस व्रत में सूर्य भगवान को अर्घ दिया जाता है लेकिन उसका भी मुहूर्त होता है और उस शुभ मुहूर्त में ही भगवान सूर्य को अर्घ दी जाती है। कहा जाता है कि यह सूर्य उपासना का पर्व है और इस पर्व के करने से कई सारी रोगों से भी मुक्ति लोगों को मिल जाती है। कहा जाता है कि जो छठ व्रती खरना पूजा के नियमों का पालन करती हैं, उनकी सारी मनोकामनाएं छठी मैया पूरी करती हैं। मान्यता है इस दिन घर में छठी मैया का आगमन होता है।

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शुभ मुहूर्त

छठ पूजा का खरना कार्तिक शुक्ल पंचमी तिथि को होता है। 5 नवंबर को नहाए खाए व्रत किया जाएगा, वहीं 6 नवंबर को खरना किया जाएगा। 7 नवंबर को संध्या अर्ध दान किया जाएगा और 8 तारीख को प्रातः कालीन अर्धन किया जाएगा।

पूजा विधि

छठ पूजा के खरना के दिन व्रती महिलाएं सुबह स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनती हैं। इसके बाद नाक से माथे तक केसरिया रंग का सिंदूर लगाती हैं। इस दिन व्रती महिलाएं व्रत रखती हैं और शाम के समय मिट्टी के चूल्हे पर साठी के चावल और गुड़ का खीर बनाया जाता है. सूर्य देव की पूजा के बाद व्रती महिलाएं इस प्रसाद को ग्रहण करती हैं। उनके खाने के बाद घर के बाकी सदस्यों में वह प्रसाद बांटा जाता है। खरना के प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रती महिलाएं 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू करती हैं।

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छठ पूजा का महत्व

Chhath Puja Shubh Muhurat 2024:  छठ पूजा का शुभारंभ नहाए खाय से होता है और इस दिन पवित्र जल में स्नान किया जाता है व उपवास का पालन करने वाली महिलाएं दिन में केवल एक ही बार भोजन ग्रहण करती हैं। इसके बाद दूसरे दिन खरना पर निर्जला उपवास का पालन किया जाता है और सूर्य देव को भोजन प्रदान करने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। छठ पूजा का मुख्य दिवस तीसरा दिन है, जिसमें महिलाएं संपूर्ण दिन निर्जल उपवास का पालन करती हैं और अस्त होते सूर्य को जल प्रदान करती हैं, जिसे इस पूजा का मुख्य अनुष्ठान माना जाता है। यह एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें ढलते हुए सूर्य को जल प्रदान किया जाता है और उनकी उपासना की जाती है। इसके बाद इस दिन पूर्ण रात्रि उपवास रखा जाता है और अगले दिन उदय होते सूर्य को जल प्रदान करने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत का पालन करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

 

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