Bhagavad Geeta Aarti : श्रीमद भगवद गीता का पाठ करने के पश्चात् ज़रूर गायें ये आरती, जीवन में संतुलन के साथ होगा आत्मिक शांति का अनुभव

After reading Shrimad Bhagavad Gita, you must sing this Aarti, you will experience peace of mind along with balance in life

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  • Publish Date - November 25, 2024 / 06:25 PM IST,
    Updated On - November 25, 2024 / 06:25 PM IST

Bhagavad Geeta Aarti : जो व्यक्ति प्रतिदिन भगवत गीता का पाठ करता है उसके जीवन से सभी नकारात्मक ऊर्जाएं दूर होने लगती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है। मान्यता है कि जो लोग गीता में बताई गई बातों को अपने जीवन में उतारते हैं, वे जीवन में आने वाली हर बड़ी से बड़ी मुश्किलों का सामना बड़ी ही आसानी से कर लेते हैं। इतना ही नहीं गीता पढ़ने से व्यक्ति का आत्मबल बढ़ता है और व्यक्ति साहसी और निडर बनके अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ता रहता है। गीता पढ़ने से मन शांत रहता है और जीवन की परेशानियां दूर होती हैं आत्मविश्वास बढ़ता है और वह साहसी बनता है। जीवन से नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। व्यक्ति को सच और झूठ का ज्ञान मिलता है। व्यक्ति को कर्म के साथ दिव्य ज्ञान का बोध मिलता है व्यक्ति क्रोध, लालच, और मोह-माया के बंधनों से मुक्त होता है। व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है, ग्रहों की शांति होती है और कुंडली में मौजूद दोष दूर होते हैं व्यक्ति को बुद्धि योगी बनने में मदद मिलती है।

Bhagavad Geeta Aarti : आईये यहाँ पढ़ें और सुनें श्रीमद भागवत गीता की ये मनमोहक आरती

भगवद गीता आरती ॥

जय भगवद् गीते,माताा जय भगवद् गीते।
हरि हिय कमल विहारिणिसुन्दर सुपुनीते॥
जय भगवद् गीते, माताा जय..॥
कर्म सुमर्म प्रकाशिनिकामासक्तिहरा।
तत्त्वज्ञान विकाशिनिविद्या ब्रह्म परा॥

Bhagavad Geeta Aarti
जय भगवद् गीते, माताा जय..॥
निश्चल भक्ति विधायिनिनिर्मल मलहारी।
शरण रहस्य प्रदायिनिसब विधि सुखकारी॥
जय भगवद् गीते, माताा जय..॥
राग द्वेष विदारिणिकारिणि मोद सदा।
भव भय हारिणि तारिणिपरमानन्दप्रदा॥
जय भगवद् गीते, माताा जय..॥

Bhagavad Geeta Aarti
आसुर-भाव-विनाशिनिनाशिनि तम रजनी।
दैवी सद्गुण दायिनिहरि-रसिका सजनी॥
जय भगवद् गीते, माताा जय..॥
समता त्याग सिखावनि,हरिमुख की बानी।
सकल शास्त्र की स्वामिनि,श्रुतियों की रानी॥
जय भगवद् गीते, माताा जय..॥

Bhagavad Geeta Aarti
दया-सुधा बरसावनिमातु! कृपा कीजै।
हरिपद प्रेम दान करअपनो कर लीजै॥
जय भगवद् गीते, माताा जय..॥
जय भगवद् गीते,माताा जय भगवद् गीते।
हरि हिय कमल-विहारिणिसुन्दर सुपुनीते॥
जय भगवद् गीते, माताा जय..॥

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