Achyutashtakam stotra in hindi : अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् । श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकीनायकं रामचंद्रं भजे ॥

Achyutashtakam stotra in hindi Achyutam Keshavam Ramnarayanam Krishnadamodaram Vasudevam Harim

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  • Publish Date - August 26, 2024 / 02:43 PM IST,
    Updated On - August 26, 2024 / 05:19 PM IST

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Achyutashtakam stotra in hindi : “अच्युतम केशवम्” मंत्र हिंदू परंपरा का एक सुंदर और शक्तिशाली मंत्र है ।अच्युतम केशवम कृष्ण दामोदरम, राम नारायणम जानकी बल्लभम। यह भगवान कृष्ण की उनके विभिन्न नामों से स्तुति करने वाली प्रार्थना है । अच्युतम का अर्थ है अचूक। केशवम का अर्थ है केशी नामक राक्षस का वध करने वाला, जो कृष्ण है । मान्यता है कि जो व्यक्ति रोज़ाना अच्युताष्टकम स्तोत्र का पाठ पढता हैं प्रभु की उसपर होती है असीम कृपा, हर भवसागर से स्वयं आके पार लगते हैं कान्हा । ‘अच्युतम केशवम कृष्ण दामोदरम’ भजन के माध्यम से पूजा करने से आध्यात्मिक संबंध गहरा होता है, जिससे आंतरिक शांति और भक्ति का आह्वान होता है।

Achyutashtakam stotra in hindi :आईये पढ़तें एवं सुनतें हैं श्री शङ्कराचार्य कृतं अच्युताष्टकम स्तोत्र

अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं
जानकीनायकं रामचंद्रं भजे ॥1॥

अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं
माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम् ।
इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं
देवकीनन्दनं नन्दजं सन्दधे ॥२॥

Achyutashtakam stotra in hindi

विष्णवे जिष्णवे शाङ्खिने चक्रिणे
रुक्मिणिरागिणे जानकीजानये ।
बल्लवीवल्लभायार्चितायात्मने
कंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः ॥३॥

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण
श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे ।
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज
द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक ॥४॥

Achyutashtakam stotra in hindi

राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितो
दण्डकारण्यभूपुण्यताकारणः ।
लक्ष्मणेनान्वितो वानरौः सेवितोऽगस्तसम्पूजितो
राघव पातु माम् ॥५॥

धेनुकारिष्टकानिष्टकृद्द्वेषिहा
केशिहा कंसहृद्वंशिकावादकः ।
पूतनाकोपकःसूरजाखेलनो
बालगोपालकः पातु मां सर्वदा ॥६॥

विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वाससं
प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम् ।
वन्यया मालया शोभितोरःस्थलं
लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ॥७॥

Achyutashtakam stotra in hindi

कुञ्चितैः कुन्तलैर्भ्राजमानाननं
रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः ।
हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं
किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे ॥८॥

अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं
प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम् ।
वृत्ततः सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरस्तस्य
वश्यो हरिर्जायते सत्वरम् ॥९॥

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