अयोध्या: इतिहास के पन्नों में वैसे तो अयोध्या को लेकर तमाम तरह की बातें लिखी गई हैं। ज्यादातर के प्रशासनिक प्रमाण भी मौजूद हैं। लेकिन बात बाबरी मस्जिद की करें तो माना यहाँ जाता है मुगल शासक बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में मस्जिद का निर्माण कराया था जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था। आपको बता दें, इस मस्जिद का निर्माण मीर बाकी ने अपने बादशाह बाबर के नाम पर किया था।
मीर बाकी का विस्तार से उल्लेख बाबरनामा में मिलता है। वह मुगल सम्राट बाबर का प्रमुख सेनापति था। वह ताशकंद (मौजूदा उजबेकिस्तान का एक शहर) का मूल निवासी था। बाबर ने उसे अवध प्रदेश का शासक नियुक्त किया था। ऐतिहासिक दस्तावेजों में जनवरी-फरवरी 1526 में बाकी की चर्चा शाघावाल नाम से मिलती है। कई किताबों में दावा किया जाता हैं कि वह काफी क्रूर था। संभवतः इसी क्रूरता की भेंट अयोध्या भी चढ़ा जिसने इस धार एके इतिहास और भूगोल दोनों को उलट-पलटकर रख दिया।
इतिहास को खंगालने पर मालूम पड़ता हैं कि बाबर 1526 में भारत आया था। 1528 तक उसका साम्राज्य अवध (वर्तमान अयोध्या) तक पहुंच गया। इसके बाद करीब तीन सदियों तक के इतिहास की जानकरी किसी भी ओपन सोर्स पर मौजूद नहीं है। 1528 में सेना की इस टुकड़ी को दुश्मनों से मुकाबले के लिए चंदेरी भेजा गया, लेकिन बाकी को इस अभियान में कामयाबी नहीं मिली। दुश्मन भाग गए और चिन तिमूर सुल्तान को उसका पीछा करने को कहा गया लेकिन बाकी को वहीं रोक दिया गया।
हालांकि, चिन तिमूर सुल्तान के नेतृत्व वाली सेना बयाजिद और बिबन (इब्राहिम लोदी के पूर्व कर्मचारी) से जीत नहीं सकी और लखनऊ का किला मुगलों के हाथ से निकल गया। मुगल सेना की हार के लिए बाकी को जिम्मेदार बताया गया। हालांकि, बाबर ने 1529 में फिर से इस किले पर कब्जा कर लिया, लेकिन वह बाकी से बेहद नाराज था।
20 जून, 1529 को बाबर ने बाकी को सेना से निकाल दिया। बाबरनामा में बाकी का इतना ही जिक्र मिलता है। इसके बाद 1813 में ईस्ट इंडिया कंपनी के सर्वेयर फ्रांसिस बुकानन ने मीर बाकी का नाम बाबरी मस्जिद से जोड़ा। बाबरनामा में मीर बाकी की कई नामों से चर्चा की गई है। उसे मीर ताशकंदी, बाकी शाघावाल, बाकी बेग और बाकी मिंगबाशी नामों से उसकी चर्चा मिलती है। लेकिन बाबरनामा में कहीं उसके लिए मीर नाम का प्रयोग नहीं किया गया है। माना जाता है कि फ्रांसिस बुकानन ने 1813-14 में बाकी के नाम के आगे मीर लगाया।
मस्जिद के शिलालेखों के अनुसार बाबर के आदेश पर मीर बाकी ने 1528-29 में इसका निर्माण कराया था। बाकी ने मस्जिद बनाने के लिए रामकोट यानी राम के किले को चुना था। कहा जाता है कि मस्जिद बनाने के लिए उसने यहां पहले से मौजूद भगवान राम के मंदिर को तोड़ दिया था। हालांकि, मुस्लिम पक्षकार यहां मंदिर के होने से इंकार करते हैं, लेकिन 19वीं सदी की शुरुआत के साथ ही यह हिंदू-मुसलमानों के बीच बड़े विवाद के कारण के रूप में तब्दील होने लगा।
बताया जाता है कि अयोध्या मंदिर- मस्जिद मुद्दे को लेकर हिंदू-मुस्लिम के बीच पहली बार 1853 में दंगा हुआ था. उस समय निर्मोही अखाड़ा ने ढांचे पर दावा करते हुए कहा कि जिस स्थल पर मस्जिद खड़ा है. वहां एक मंदिर हुआ करता था। जिसे बाबर के शासनकाल में नष्ट किया गया। अगले 2 सालों तक इस मुद्दे को लेकर अवध (वर्तमान में आयोध्या) में हिंसा भड़कती रही।
तो यह थी उपलब्ध दस्तावेजों और इतिहासकारों के अनुसार मेरे बाकी खान की कहानी। कल के अध्याय में हम जानेंगे की राम मंदिर को लेकर स्थानीय लोगों के क्या प्रयास थे और कैसे यह पूरा मामला अदालत के दरवाजे तक पहुंचा।