Year Ender 2022: Uddhav government fell in Maharashtra : नई दिल्ली। साल 2022 को अलविदा कहने का वक्त आ गया है। तो वहीं नया साल 2023 के स्वागत के लिए तैयार हो जाइए। साल 2022 में कई ऐसे पॉलिटिकल विवाद सामने आए है जिनसे हम अच्छी तरह वाकिफ है। हर कैलेंडर वर्ष अपने दामन में तमाम तरह की कड़वी-मीठी यादें समेटते हुए विदा होता है। ये यादें अंतरराष्ट्रीय घटनाओं को लेकर भी होती हैं और राष्ट्रीय घटनाओं को लेकर भी। तो वहीं कोरोना महामारी के चलते हाहाकार, चीत्कार और अफरा-तफरी से भरे साल 2020 और 2021 बाद 2022 का साल हमारे राष्ट्रीय जनजीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा। इस साल में देश को नए राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति मिले। बेहद साधारण पृष्ठभूमि की द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने भी इस साल दो प्रधान न्यायाधीशों को सेवानिवृत्त होते और तीसरे को पदासीन होते देखा।
Year Ender 2022: Uddhav government fell in Maharashtra : संवैधानिक पदों पर इन निर्वाचनों और नियुक्ति के साथ ही इस साल जहां एक तरफ वे सवाल और गहरे हुए जो पिछले कुछ सालों से हमारे लोकतंत्र, संविधान और राष्ट्रीय सुरक्षा और एकता के लिए चुनौती बने हुए हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ घटनाएं ऐसी भी हुईं जिनसे हमें कुछ आश्वस्ति मिली कि हम उन चुनौतियों का मुकाबला कर सकते हैं।
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Year Ender 2022: Uddhav government fell in Maharashtra : हम बात करते है पुरानी पार्टी के विवाद की। महाराष्ट्र में लंबे समय तक चली सियासी उथल-पुथल के बाद आखिरकार उद्धव सरकार को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार के सीएम रहे ठाकरे के इस्तीफा देने के बाद शिंदे गुट के एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके साथ ही बीजेपी के देवेन्द्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बनाया गया। ठाणे की कोपरी-पछपाखाड़ी विधानसभा सीट से विधायक और कभी उद्धव सरकार में नगर विकास और सार्वजनिक निर्माण मंत्री रह चुके शिंदे ने आखिरकार उद्धव सरकार को अपनी ताकत दिखा ही दी। शिंदे ने शिवसेना के 40 से ज्यादा विधायकों को अपने साथ कर उद्धव की सत्ता पलट दी।
इन चुनावी हार-जीतों के बीच ही भाजपा का ऑपरेशन लोटस यानी राज्यों में विपक्षी दलों के विधायकों की डरा कर या लालच देकर तोड़ने विपक्षी दल की सरकार को गिराने का खेल इस साल भी जारी रहा। महाराष्ट्र में तीन साल पहले शिव सेना ने भाजपा से नाता तोड़ कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिल कर सरकार बनाई थी, जिसे भाजपा हजम नहीं कर पा रही थी। पहले उसने कांग्रेस और एनसीपी के विधायकों को तोड़ कर सरकार गिराने की कोशिशें कीं। उनमें नाकाम रहने पर आखिर उसने 30 साल तक अपनी सहयोगी रही शिव सेना को तोड़ दिया और उसके टूटे हुए धड़े के नेता की अगुवाई में सरकार बना ली।
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इस पूरे नाटकीय घटनाक्रम में चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट से जिस भूमिका की स्वाभाविक अपेक्षा थी, वह उन्होंने नहीं निभाई। दलबदल विरोधी कानून भी बेमतलब साबित हुआ। उस घटनाक्रम को छह महीने से अधिक हो गए हैं लेकिन चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट अभी तक शिव सेना के विभाजन से संबंधित कानूनी विवाद का निबटारा नहीं कर सके हैं। महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन की सरकार को गिरा कर जो भाजपा ने जो खुशी हासिल की थी, वह ज्यादा समय तक कायम नहीं रह सकी। महज दो महीने बाद ही बिहार में उसे आधी-अधूरी सत्ता से हाथ धोना पड़ा जब अगस्त महीने में नीतीश कुमार के जनता दल (यू) ने भाजपा से नाता तोड़ कर राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और वामपंथी दलों के साथ साझा बना ली।