नई दिल्लीः Shardiya Navratri 2024 4th Day शक्ति आराधना का पर्व नवरात्र शुरू हो चुका है। इस पावन पर्व के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। मान्यताओं के मुताबिक जब दुनिया का निर्माण भी नहीं हुआ था, तब हर ओर अंधकार था। ऐसे में मां कूष्मांडा ने अपनी हल्की सी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। इनकी आठ भुजाएं हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा कहते हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जाप माला है। कूष्मांडा माता शेर पर सवार रहती हैं। माता के पूजन से भक्तों के समस्त प्रकार के कष्ट रोग, शोक संतापों का अंत होता है तथा दीर्घायु एवं यश की प्राप्ति होती है।
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Shardiya Navratri 2024 4th Day हिंदू पंचांग के मुताबिक चतुर्थी तिथि की शुरुआत 6 अक्टूबर को सुबह 7 बजकर 49 मिनट पर होगी, जो 7 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 49 मिनट पर खत्म होगी।
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के बाद साफ सुथरे कपड़े धारण करके पूजा स्थान को साफ करें।
इसके बाद मां कूष्मांडा को कुमकुम, मौली, अक्षत, पान के पत्ते और केसर अर्पित करें।
धूप दीप जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करने के बाद अंत में मां कूष्मांडा की भक्तिभाव से आरती करें।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक मां कूष्मांडा की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति को कभी भी किसी चीज की कोई कमी नहीं रहती है। सभी तरह के दुख और कष्ट से छुटकारा मिलता है।
नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा को आटे और घी से बने मालपुए का भोग लगाना चाहिए। मां कूष्मांडा का ये पसंदीदा व्यंजन है।
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥