High Court big decision on loudspeakers: ‘लाउडस्पीकार का इस्तेमाल किसी भी धर्म का आवश्यक हिस्सा नहीं’, उच्च न्यायालय ने नियम तोड़ने वालों पर कार्रवाई के निर्देश दिए

High Court big decision on loudspeakers: लाउडस्पीकार का इस्तेमाल किसी भी धर्म का आवश्यक हिस्सा नहीं : बंबई उच्च न्यायालय

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  • Publish Date - January 23, 2025 / 10:39 PM IST,
    Updated On - January 24, 2025 / 12:16 AM IST

मुंबई: High Court big decision on loudspeakers, बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को व्यवस्था दी कि लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। अदालत ने इसी के साथ कानून प्रवर्तन एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे ध्वनि प्रदूषण के मानदंडों और नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करें।

न्यायमूर्ति ए. एस. गडकरी और न्यायमूर्ति एस. सी. चांडक की पीठ ने कहा कि शोर स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है और कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि अगर उसे लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी गई तो उसके अधिकार किसी भी तरह प्रभावित होंगे।

उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह धार्मिक संस्थाओं को ध्वनि स्तर को नियंत्रित करने के लिए तंत्र अपनाने का निर्देश दे, जिसमें स्वत: ‘डेसिबल’ सीमा तय करने की ध्वनि प्रणालियां भी शामिल हों।

अदालत ने यह फैसला कुर्ला उपनगर के दो आवास संघों – जागो नेहरू नगर रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन और शिवसृष्टि कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटीज एसोसिएशन लिमिटेड – द्वारा दायर याचिका पर पारित किया। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि क्षेत्र की मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि ‘अजान’ सहित धार्मिक उद्देश्यों के लिए लाउडस्पीकर का उपयोग शांति को भंग करता है और ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 के साथ-साथ पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि मुंबई एक महानगर है और जाहिर है कि शहर के हर हिस्से में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं।

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उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘यह जनहित में है कि ऐसी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ऐसी अनुमति देने से इनकार करने पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 या 25 के तहत अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है। लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।’’

अदालत ने कहा कि राज्य सरकार और अन्य प्राधिकारियों का यह ‘कर्तव्य’ है कि वे कानून के प्रावधानों के तहत निर्धारित सभी आवश्यक उपाय अपनाकर कानून को लागू करें। फैसले में कहा गया, ‘‘एक लोकतांत्रिक राज्य में ऐसी स्थिति नहीं हो सकती कि कोई व्यक्ति/व्यक्तियों का समूह/व्यक्तियों का संगठन कहे कि वह देश के कानून का पालन नहीं करेगा और कानून लागू करने वाले अधिकारी मूकदर्शक बने रहेंगे।’’ इसमें कहा गया है कि आम नागरिक ‘‘लाउडस्पीकर और/या एम्प्लीफायर के इन घृणित उपयोग के असहाय शिकार हैं।’’

अदालत ने कहा कि पुलिस को ध्वनि प्रदूषण नियमों का उल्लंघन करने वाले लाउडस्पीकर के खिलाफ शिकायतों पर शिकायतकर्ता की पहचान मांगे बिना कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि ऐसे शिकायतकर्ताओं को निशाना बनाए जाने, दुर्भावना और घृणा से बचाया जा सके।

धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के खिलाफ हो कार्रवाई

अदालत ने मुंबई के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि वे सभी थानों को निर्देश जारी करें कि धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के खिलाफ कोई भी शिकायत मिलने पर तुरंत कार्रवाई हो।

पीठ ने कहा, ‘‘हम इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान लेते हैं कि आम तौर पर लोग/नागरिक तब तक किसी चीज के बारे में शिकायत नहीं करते जब तक कि वह असहनीय और परेशानी का कारण न बन जाए।’’

अदालत ने अधिकारियों को याद दिलाया कि आवासीय क्षेत्रों में परिवेशी ध्वनि का स्तर दिन के समय 55 डेसिबल से अधिक नहीं होना चाहिए तथा रात में 45 डेसिबल से अधिक नहीं होना चाहिए।

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क्या अदालत ने यह कहा है कि लाउडस्पीकर का उपयोग किसी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है?

हां, बंबई उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि इस पर प्रतिबंध लगाने से संविधान के अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) या अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन नहीं होता।

ध्वनि प्रदूषण के संदर्भ में अदालत का मुख्य निर्देश क्या है?

अदालत ने पुलिस और अन्य प्राधिकरणों को निर्देश दिया कि वे ध्वनि प्रदूषण के नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। यह भी कहा गया कि शिकायत दर्ज करते समय शिकायतकर्ता की पहचान ना पूछी जाए ताकि शिकायतकर्ताओं को प्रतिशोध का सामना न करना पड़े।

क्या आदेश धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकरों पर भी लागू होता है?

हां, अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर भी ध्वनि प्रदूषण नियमों के अधीन हैं। यदि कोई धार्मिक स्थल नियमों का उल्लंघन करता है, तो पुलिस को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।

ध्वनि स्तर की कानूनी सीमा क्या है?

आवासीय क्षेत्रों में परिवेशी ध्वनि का स्तर दिन के समय 55 डेसिबल और रात के समय 45 डेसिबल से अधिक नहीं होना चाहिए। अदालत ने अधिकारियों को इन स्तरों का पालन सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया है।

अदालत का रुख क्या है जब नागरिकों को शोर की समस्या असहनीय हो जाती है?

अदालत ने कहा कि आम नागरिक तब तक शिकायत नहीं करते जब तक समस्या असहनीय न हो जाए। इसलिए, अधिकारियों को नागरिकों की शिकायतों पर संवेदनशीलता से कार्य करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ध्वनि प्रदूषण नियमों का पालन हो।