सांगली, 26 जनवरी (भाषा) महाराष्ट्र के सांगली जिले के भीलवाड़ी गांव के मुख्य बाजार में प्रतिदिन सुबह निवासियों द्वारा राष्ट्रगान गाने की परंपरा 15 अगस्त 2020 को शुरू हुई जो अब और मजबूत हो रही है और कुछ अन्य क्षेत्र के लोग भी इसे अपना रहे हैं।
यह गांव पलुस तहसील में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है।
स्थानीय निवासी अमोल मकवाना ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि निवासी हर सुबह 9:10 बजे राष्ट्रगान के लिए मुख्य बाजार में एकत्र होते हैं। दुकानदार राष्ट्रगान के बाद ही अपनी दुकानें खोलते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ इसे जबरदस्त सराहना मिल रही है। बाजार आने वाले लोग राष्ट्रगान शुरू होते ही जहां होते हैं वहीं खड़े हो जाते हैं।’’
सामाजिक कार्यकर्ता दीपक पाटिल ने इसकी शुरुआत की थी। उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि कोविड-19 महामारी सभी के लिए निराशा भरा वक्त था। लोग एक-दूसरे से मिल नहीं पा रहे थे, व्यापारी दुकानें नहीं खोल पाने से हतोत्साहित थे।
उन्होंने कहा,‘‘ छह से आठ महीने तक सब कुछ ठप रहा। भीलवाड़ी व्यापार संघ का मानना था कि लोगों का मनोबल बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका है एकता का प्रदर्शन। हम सभी को यह समझाने में कामयाब रहे कि दिन की शुरुआत जन गण मन से करना सबसे अच्छा मंत्र है।’’
पाटिल ने कहा, ‘‘ एक सार्वजनिक संबोधन प्रणाली स्थापित की गई थी, जिससे यह सुनिश्चित हो सका कि राष्ट्रगान शुरू होते ही हर कोई खड़ा हो जाए। हमने हर दिन सुबह 9:10 बजे राष्ट्रगान बजाना शुरू करने का फैसला किया। अब जिज्ञासावश अन्य गांवों के निवासी भी उस समय यहां पहुंचते हैं। हमारे कार्यक्रम का वीडियो लाखों लोगों ने देखा और यह सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।’’
पाटिल ने कहा कि उन्हें राष्ट्रगान बजाने का विचार केरल के एक गांव से मिला हालांकि दुर्भाग्यवश यह प्रथा वहां बंद हो गई।
उन्होंने कहा, ‘‘ राष्ट्रगान सिर्फ 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही क्यों बजाया जाना चाहिए? राष्ट्रगान गाते समय हम सभी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। यह हमारे स्कूली जीवन का अभिन्न अंग था। अब हमारे बाद सांगली के पलुस गांव और गढ़चिरौली के मुलचेरी गांव ने भी यह प्रथा शुरू कर दी है।’’
इस जनसूचना प्रणाली के माध्यम से लापता बच्चों, सामान चोरी और बाढ़ की चेतावनी आदि के बारे में लोगों के जानकारी दी जाती है।
उन्होंने बताया, ‘‘ अब तक 74 मोबाइल फोन, छह कारें, आधार और पैन कार्ड, एटीएम कार्ड आदि उनके असली मालिकों को लौटाए जा चुके हैं।’’
भाषा शोभना नरेश
नरेश