मुंबई। महाराष्ट्र का सियासी संकट अब लगभग खत्म होने वाला है। आज शाम साढ़े सात बजे शिवसेना के बागी विधायक एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के 20वे मुख्यमंत्री के रुप मे शपथ लेंगे। उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के बाद से राजनीतिक जानकार ये कयास लगा रहे थे कि देवेंद्र फडणवीस फिर से महाराष्ट्र के सिंहासन पर विराजेंगे। लेकिन बीजेपी ने फिर अपनी पुरानी चाल चली और तमाम सियासी आकलनों को झूठा साबित करते हुए एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने की घोषणा कर दी। इस पूरे सियासी ड्रामे की सबसे हास्यास्पद बात ये रही कि मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार फडणवीस ने अपने हाथों से शिंदे को अपनी कुर्सी दे दी। जिसके लिए उन्होंने क्या क्या तिकड़म लगाए थे।
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महाराष्ट्र की राजनीति के लिए ये सियासी संकट नया नहीं है और ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है। प्रदेश में अभी तक तीन बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है। राज्य में पहली बार 17 फरवरी 1980 को राष्ट्रपति शासन लगा था। दूसरी बार 17 फरवरी से 8 जून 1980 तक यानी 112 दिन तक राष्ट्रपति शासन लगा था। इसके बाद 28 सितंबर 2014 को राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था।
साल 1980 में भी ऐसा ही राजनीतिक संकट गहराया था और उसके बाद सरकार गिरी और 112 दिन तक कोई भी मुख्यमंत्री नहीं बना। 1980 में पैदा हुए इस संकट की शुरुआत 1978 से हुई थी। जब आज के एनसीपी प्रमुख ने शरद पवार ने कांग्रेस में बगावत की। उस दौरान वे तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल की सरकार से अलग हो गए। वैसे आपको बता दें कि उस वक्त देश में इमरजेंसी का दौर खत्म हुआ ही था और उस वकेत वसंतदादा पाटिल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। वंसतदादा पाटिल की सरकार में शरद पवार थे, लेकिन वो 1980 में अलग हो गए।
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शरद पवार ने प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट तैयार किया था और खुद सरकार के मुखिया बन गए. लेकिन, उनका राजनीति भी ज्यादा दिन तक कमाल नहीं दिखा पाई। साल 1980 में उनकी सरकार भी चली गई । इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बन गई। उस दौरान 17 फरवरी 1980 को शरद पवार की सरकार की बर्खास्तगी के ऑर्डर पर राष्ट्रपति ने मुहर लगा दी और महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। ये करीब 112 दिन तक रहा और फिर राज्य में चुनाव हुए, इसके बाद कांग्रेस को अच्छी सीट मिली।