मुंबई, 15 दिसंबर (भाषा)उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (उबाठा) ने महाराष्ट्र विधानसभा के लिए 20 नवंबर को हुए चुनाव में मिली करारी हार के बाद गत कुछ दिनों से अपने मूल हिंदुत्व एजेंडे पर लौटने के संकेत दिए हैं।
पार्टी ने पड़ोसी देश बांग्लादेश में अगस्त में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद वहां हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के लिए केंद्र पर कड़ा हमला किया है और अब वह मुंबई के दादर स्टेशन के बाहर स्थित ‘‘80 साल पुराने’’ हनुमान मंदिर की ‘‘रक्षा’’ के लिए आगे आई है, जिसे रेलवे द्वारा ध्वस्त करने का नोटिस दिया गया है।
शिवसेना (उबाठा) नेता आदित्य ठाकरे ने हिंदुत्व के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को घेरने की अपनी मंशा का संकेत देते हुए मंदिर में ‘महा आरती’ की।
इससे पहले छह दिसंबर को पार्टी ने कुछ सहयोगियों की नाराजगी तब बढ़ा दी थी जब उद्धव ठाकरे के करीबी सहयोगी और विधान परिषद के सदस्य(एमएलसी) मिलिंद नार्वेकर ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर बाबरी मस्जिद विध्वंस की एक तस्वीर साझा की और साथ ही शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे का यह आक्रामक कथन भी पोस्ट किया था, ‘‘मुझे उन लोगों पर गर्व है जिन्होंने यह किया।’’ऋ अयोध्या में मस्जिद को छह दिसंबर 1992 को कार सेवकों ने ध्वस्त कर दिया था।
इस कदम से असहज समाजवादी पार्टी की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष अबू आजमी ने कहा कि उनकी पार्टी राज्य में विपक्षी गठबंधन महा विकास आघाडी (एमवीए) से अलग हो रही है जिसमें शिवसेना के अलावा कांग्रेस और शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) भी शामिल है।
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों और पर्यवेक्षकों का कहना है कि नार्वेकर ने पार्टी नेतृत्व की जानकारी के बिना संदेश साझा नहीं किया होगा।
उद्धव ठाकरे ने शुक्रवार को बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर केंद्र सरकार पर हमला किया था और जानना चाहा था कि पड़ोसी देश में समुदाय की सुरक्षा के लिए भारत ने क्या कदम उठाए हैं।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि ये कदम शिवसेना(उबाठा) की नीति में एक और बदलाव का संकेत है जिसने 2019 में अपने लंबे समय की सहयोगी भाजपा से नाता तोड़ लिया था और कांग्रेस और राकांपा के साथ हाथ मिला लिया, लेकिन अपने ‘मराठी मानुस’ (भूमि पुत्र) के नारे पर कायम रही।
इन पर्यवेक्षकों ने कहा कि यह कदम ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी को विधानसभा चुनावों में मिली हार और नगर निकाय चुनावों से पहले उठाया गया है। राज्य में 2022से मुंबई सहित महाराष्ट्र के अधिकांश शहरों में निकाय चुनाव होने हैं। एमवीए गठबंधन के तहत 95 सीट पर लड़ने के बावजूद शिवसेना (उबाठा) को 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में केवल 20 सीट पर जीत मिली है।
एशिया के सबसे अमीर नगर निकायों में से एक बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) पर 1997 से 2022 तक लगातार 25 वर्षों तक अविभाजित शिवसेना का नियंत्रण था। 2017 में बीएमसी चुनाव में, शिवसेना और भाजपा के बीच मुकाबला हुआ और दोनों दलों को क्रमश: 84 और 82 सीट मिलीं।
इस साल संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने मुंबई की छह में से चार सीट पर जीत दर्ज की। लेकिन आंकड़ों का बारीकी से विश्लेषण करने पर चलता है कि उसने अपने पारंपरिक मतदाता आधार वाली सीटों पर अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। आदित्य ठाकरे की अपनी वर्ली विधानसभा सीट पर पार्टी की बढ़त सात हजार मतों से कम थी।
सत्तारूढ़ भाजपा ने शिवसेना (उबाठा) पर अल्पसंख्यक मतों की मदद से जीत दर्ज करने का आरोप लगाया।
समान नागरिक संहिता और वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी के अस्पष्ट रुख ने भाजपा को अपनी पूर्व सहयोगी पर हमला करने का और मौका दे दिया।
विधानसभा चुनाव के नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए गए, मुंबई में 24 निर्वाचन क्षेत्रों में से मात्र 10 में शिवसेना(उबाठा) को जीत मिली जो उसके मतदाता आधार में कमी का एक और संकेत था, विशेष रूप से उसके मूल समर्थकों के बीच।
इसके अलावा, तीन निर्वाचन क्षेत्रों (जोगेश्वरी पूर्व, वर्सोवा और माहिम) में जीत का अंतर 2000 मतों से कम था, जबकि वर्ली, शिवडी, कलिना और डिंडोशी में यह 10000 से कम था। केवल विक्रोली, बायकुला और वंद्रे पूर्व में जीत 10,000 से अधिक के अंतर से मिली।
राज्य विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष अंबादास दानवे ने कहा कि शिवसेना (उबाठा) ने कभी हिंदुत्व को नहीं छोड़ा और यह बात तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी स्पष्ट कर दी थी।
दानवे ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैं विपक्ष को चुनौती देता हूं कि वह एक भी ऐसा उदाहरण दिखाए जहां हमने हिंदुत्व को त्यागा हो। हमारा हिंदुत्व अलग है। इसका मतलब अल्पसंख्यकों से नफरत करना नहीं है।’’
शिवसेना (उबाठा) नेता ने हालांकि स्वीकार किया कि पार्टी ‘‘भाजपा के इस विमर्श’ का मुकाबला करने में विफल रही कि ठाकरे के नेतृत्व वाले दल ने हिंदुत्व को छोड़ दिया है, खासकर तब जब सत्तारूढ़ पार्टी ने विधानसभा चुनाव अभियान में ‘‘एक हैं तो सेफ हैं’ और ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारे लगाए।
राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे ने कहा कि शिवसेना (उबाठा) द्वारा 2019 में अपना राजनीतिक रुख बदलने से 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी में फायदा हुआ क्योंकि इससे उसे नया मतदाता आधार मिला।
देशपांडे ने साथ ही रेखांकित किया कि नवंबर में हुए विधानसभा चुनावों से पता चला कि पार्टी ने अपने मूल मतदाता आधार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और भाजपा के हाथों खो दिया है।
देशपांडे ने कहा कि शिवसेना (उबाठा) को यह एहसास हो गया है कि पार्टी का ‘धर्मनिरपेक्ष’ रुख बीएमसी चुनाव में काम नहीं आएगा, इसलिए वह अपने मूल हिंदुत्व एजेंडे पर वापस आ गई है।उन्होंने कहा कि पार्टी का धर्मनिरपेक्ष रुख उन वार्ड में मददगार साबित हो सकता है जहां कांग्रेस के उम्मीदवार कमजोर हैं और वहां अल्पसंख्यक मतदाता शिवसेना(उबाठा) की ओर आकर्षित होंगे।
‘जय महाराष्ट्र – हा शिव सेना नवाचा इतिहास आहे’ (जय महाराष्ट्र – यह शिव सेना का इतिहास है) के लेखक प्रकाश अकोलकर ने कहा कि पार्टी की हिंदुत्व की ओर वापसी चुनावी असफलताओं से उसकी ‘हताशा’ के कारण है।
अकोलकर ने कहा,‘‘2019 में मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद पहले सत्र में उद्धव ठाकरे ने कहा था कि उनकी पार्टी ने धर्म को राजनीति के साथ मिलाकर गलती की है। अब पार्टी अपने मुख्य हिंदुत्व के मुद्दे पर वापस जा रही है। इससे पता चलता है कि पार्टी के पास कोई वास्तविक विचारधारा नहीं है।’’
भाषा धीरज नरेश
नरेश