राज कपूर की 100वीं जयंती : निर्देशक अनीस बज़्मी, इम्तियाज अली और हंसल मेहता ने किया याद

राज कपूर की 100वीं जयंती : निर्देशक अनीस बज़्मी, इम्तियाज अली और हंसल मेहता ने किया याद

  •  
  • Publish Date - December 15, 2024 / 07:24 PM IST,
    Updated On - December 15, 2024 / 07:24 PM IST

मुंबई, 15 दिसंबर (भाषा) हिंदी सिनेमा के मौजूदा दौर के निर्देशकों का कहना है कि राज कपूर एक भावुक फिल्मकार थे, जिन्होंने अपनी फिल्मों के मनोरंजन के स्तर से समझौता किए बिना जीवन की वास्तविकताओं को प्रभावी ढंग से पर्दे पर प्रस्तुत किया।

राज कपूर अगर जीवित होते तो 14 दिसंबर को 100 साल के हो जाते।

फिल्म और रंगमंच के दिग्गज पृथ्वीराज कपूर के बेटे राज कपूर एक अभिनेता, संपादक, निर्देशक और निर्माता थे, जिन्होंने 1948 में आर.के. स्टूडियो की स्थापना की थी।

राज कपूर ने अपने चार दशक लंबे करियर में केवल 10 फिल्में निर्देशित कीं, जिनमें से कुछ अविस्मरणीय क्लासिक फिल्मों की सूची में ‘‘आवारा’’ और ‘‘श्री 420’’ हैं, अन्य ‘‘बॉबी’’ और ‘‘संगम’’ ब्लॉकबस्टर फिल्में और फिर विवादास्पद हिट फिल्में हैं, जिनमें ‘‘सत्यम शिवम सुंदरम’’, ‘‘प्रेम रोग’’ और ‘‘राम तेरी गंगा मैली’’ शामिल हैं।

राज कपूर की 1982 की फिल्म ‘प्रेम रोग’ में सहायक निर्देशक के रूप में काम करने वाले अनीस बज़्मी ने कहा कि उन्हें इस बात पर गर्व है कि उन्होंने ‘राज कपूर यूनिवर्सिटी’ से फिल्म निर्माण की पढ़ाई की है।

बज़्मी ने कहा, ‘‘उन्होंने ऐसी फिल्में बनाईं जो अपने समय से आगे थीं। उन्होंने जीवन की कठोर वास्तविकताओं को समझा और उसे खूबसूरती से पर्दे पर उतारा जो लोगों को काफी पसंद आया।’’

बज़्मी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘वे उन निर्देशकों में से हैं जिनकी फिल्में कभी पुरानी नहीं होतीं, बल्कि समय के साथ पुरानी होती जाती हैं। वे एक संपूर्ण और महान निर्देशक थे। मैंने उनसे सीखा है कि उस तरह के जुनून के साथ फिल्म कैसे बनाई जाती है।’’

‘शाहिद’ और ‘अलीगढ़’ जैसी प्रशंसित सामाजिक फिल्मों के लिए मशहूर हंसल मेहता ने कहा कि 1980 के दशक की शुरुआत में दूरदर्शन पर राज कपूर की फिल्में देखने के बाद वे उनके सिनेमा से मोहित हो गए थे।

मेहता ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ वह फिल्म निर्माताओं की उस पीढ़ी में से हैं, जिनका प्रभाव लंबे समय तक रहा है, खासकर हिंदी सिनेमा पर। कोई भी फिल्मकार यह नहीं कह सकता कि वह राज कपूर के सिनेमा से अछूता रहा हो। ’’

मेहता ने राज कपूर को अन्य फिल्मकारों से अलग बताते हुए कहा, ‘‘वह एक प्रभावशाली फिल्मकार थे। दुर्भाग्य से लोगों को उनकी फिल्मों की सामाजिक प्रासंगिकता कभी समझ में नहीं आई, उन्हें केवल इसका शोमैन पहलू ही समझ में आया। उनकी फिल्मों के संगीत, नृत्य और बड़े-से-बड़े तत्व, वे आमतौर पर उसी से आकर्षित होते थे।’’

वरिष्ठ अभिनेता-निर्देशक राकेश रोशन ने कहा कि राज कपूर की फिल्म ‘श्री 420’ का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

रोशन ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैंने ‘श्री 420’ कम से कम 500 बार देखी है। जब भी मैं कोई नयी फिल्म शुरू करता हूं, तो मैं ‘श्री 420’ देखता हूं क्योंकि यह मुझे प्रेरित करती रहती है। यह एक संपूर्ण फिल्म थी और समय से बहुत आगे की थी। वह एक ऐसे निर्देशक थे जो अपनी फिल्मों में अपना दिल और आत्मा डाल देते थे। ’’

इम्तियाज अली ने कहा कि भारतीय सिनेमा को राज कपूर जितना शक्तिशाली बनाने वाला कोई भी व्यक्ति मिलना असंभव है।

उन्होंने कहा कि यदि उन्हें सिनेमा जगत के दिग्गज राज कपूर की फिल्म सेट पर काम करने का मौका मिलता तो वे बेहतर निर्देशक साबित होते।

इम्तियाज अली ने कहा, ‘‘भारतीय फिल्म उद्योग में आज और हमेशा कोई भी निर्देशक, फिल्म निर्माता या अभिनेता राज कपूर से प्रेरित रहेगा। उनके भीतर अदम्य साहस था; पुरुषों, महिलाओं, समाज, बुरे लोगों, अच्छे लोगों, अच्छे समय और बुरे समय के प्रति उनका प्रेम, जो हमेशा देश के लोकाचार का हिस्सा बना रहेगा। ’’

शेखर कपूर के अनुसार राज कपूर भारत के पहले फिल्म निर्माता थे जिन्होंने देश के सिनेमा के लिए वैश्विक बाजार खोला।

शेखर ने कहा, ‘‘ राज कपूर की ‘आवारा’ आज भी भारत के बाहर सबसे ज़्यादा बिकने वाली फ़िल्म है। वे ही हैं जिन्होंने फ़िल्मों को भारत से बाहर रोमानिया, रूस और पश्चिम एशिया तक पहुंचाया। इस मामले में वे अग्रणी थे। जब मैंने ‘आवारा’ देखी, तो मुझे एहसास हुआ कि वे कितने प्रासंगिक थे।’’

भाषा रवि कांत रवि कांत धीरज

धीरज