नवाब मलिक के खिलाफ अत्याचार अधिनियम मामले में पुलिस सबूतों के अभाव में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करेगी

नवाब मलिक के खिलाफ अत्याचार अधिनियम मामले में पुलिस सबूतों के अभाव में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करेगी

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  • Publish Date - January 21, 2025 / 02:41 PM IST,
    Updated On - January 21, 2025 / 02:41 PM IST

मुंबई, 21 जनवरी (भाषा) मुंबई पुलिस ने बंबई उच्च न्यायालय को सूचित किया है कि उसने स्वापक नियंत्रण ब्यूरो (एनसीबी) के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक समीर वानखेड़े की ओर से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता नवाब मलिक के खिलाफ दायर किए गए अत्याचार अधिनियम के मामले की जांच की है और सबूतों के अभाव में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने का फैसला किया है।

वानखेड़े ने 2022 में उपनगरीय गोरेगांव पुलिस में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मलिक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।

पिछले वर्ष वानखेड़े ने अपने वकील राजीव चव्हाण के माध्यम से उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उनकी शिकायत पर पुलिस पर कोई कार्रवाई न करने का आरोप लगाया गया था और मामला सीबीआई को सौंपे जाने का अनुरोध किया था।

अतिरिक्त लोक अभियोजक एसएस कौशिक ने 14 जनवरी को न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ को सूचित किया कि पुलिस ने मामले की जांच की है और ‘सी समरी रिपोर्ट’ दाखिल करने का फैसला किया है।

‘सी-समरी रिपोर्ट’ उन मामलों में दायर की जाती है जहां जांच के बाद पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि कोई सबूत नहीं है और मामला न तो सच है और न ही झूठ।

एक बार जब ऐसी रिपोर्ट संबंधित निचली अदालत के समक्ष दायर कर दी जाती है तो मामले में शिकायतकर्ता उसे चुनौती दे सकता है और सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।

करदाता सेवा महानिदेशालय (डीजीटीएस) में अतिरिक्त आयुक्त और महार अनुसूचित जाति के सदस्य वानखेड़े ने मामले को सीबीआई को सौंपे जाने का अनुरोध किया था।

पीठ ने 14 जनवरी के अपने आदेश में याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि पुलिस के बयान के अनुसार इसमें विचार करने योग्य कुछ भी नहीं है। इस आदेश की प्रति मंगलवार को उपलब्ध हुई।

हालांकि, अदालत ने कहा कि वानखेड़े कानून के अनुसार उचित मंच के समक्ष उचित कदम उठा सकते हैं।

दिसंबर 2024 में उच्च न्यायालय ने पुलिस को मामले की जांच करने और इसे तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने का निर्देश दिया था।

पुलिस ने तब अदालत को बताया था कि मामले में दो और धाराएं अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1) क्यू और आर, शामिल की गई हैं।

ये धाराएं किसी लोक सेवक को चोट पहुंचाने या परेशान करने तथा अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को जानबूझकर अपमानित करने या डराने के लिए झूठी या तुच्छ जानकारी देने से संबंधित हैं।

वानखेड़े ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि मलिक ने साक्षात्कारों के दौरान और अपने सोशल मीडिया पर वानखेड़े और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ उनकी जाति के आधार पर अपमानजनक टिप्पणियां कीं।

उच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में वानखेड़े ने दावा किया कि पुलिस ने अब तक मामले में कोई जांच नहीं की है और उन्होंने मामले को सीबीआई को सौंपने का अनुरोध किया।

उन्होंने अदालत से जांच की निगरानी का भी अनुरोध किया था। वानखेड़े और मलिक के बीच तब से विवाद है जब से एनसीबी ने 2021 में मलिक के दामाद समीर खान को मादक पदार्थ मामले में गिरफ्तार किया था।

वानखेड़े ने आरोप लगाया कि खान की गिरफ्तारी के बाद मलिक ने सोशल मीडिया और टेलीविजन पर उन्हें और उनके परिवार को बदनाम करने और अपमानित करने के लिए लगातार अभियान चलाया, उनकी जाति को निशाना बनाया और उनके जाति प्रमाणपत्र की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए।

भाषा शोभना नरेश

नरेश