प्रधानमंत्री का प्रधान न्यायाधीश के आवास पर जाना प्रोटोकॉल को लेकर सवाल उठाता है : शिवसेना (यूबीटी)

प्रधानमंत्री का प्रधान न्यायाधीश के आवास पर जाना प्रोटोकॉल को लेकर सवाल उठाता है : शिवसेना (यूबीटी)

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  • Publish Date - September 13, 2024 / 01:37 PM IST,
    Updated On - September 13, 2024 / 01:37 PM IST

मुंबई, 13 सितंबर (भाषा) शिवसेना (उद्धव बालासाहब ठाकरे) ने शुक्रवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गणेशोत्सव के अवसर पर प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ के आवास पर जाना प्रोटोकॉल के बारे में सवाल खड़े करता है।

अपने मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी ने कहा कि मोदी ने भारतीय राजव्यवस्था के अंतिम स्तंभ को भी ध्वस्त कर दिया है। यह देश की प्रतिष्ठा का पतन है

संपादकीय में मोदी की बुधवार को चंद्रचूड़ के आवास की यात्रा पर कहा गया है, ‘‘प्रधानमंत्री और प्रधान न्यायाधीश के बीच निजी मुलाकात ने प्रोटोकॉल को लेकर सवाल खड़े किए हैं।’’ मोदी की इस यात्रा को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।

संपादकीय में कहा गया है कि रिटायरमेंट के बाद की ‘सुविधा’ न्यायपालिका में सबसे बड़ी खतरे की घंटी है! चंद्रचूड़ पर तंज करते हुए शिवसेना (यूबीटी) ने कहा कि यह देखना दिलचस्प होगा कि सेवानिवृत्ति के बाद प्रधानमंत्री उन्हें कहां ले जाकर बिठाते हैं।

उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट के अनुसार प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ 10 नवंबर, 2024 को सेवानिवृत्त हो जाएंगे।

सामना के संपादकीय में दावा किया गया है कि जिन न्यायाधीशों ने लोकतंत्र और संविधान को ‘‘कुचलने में’’ सरकार की मदद की है उन्हें उनकी सेवानिवृत्ति के बाद इनाम मिला है।

इसमें कहा गया है कि चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के बारे में लोगों की राय अलग थी और अब भी है। एक तो चंद्रचूड़ के घराने की न्यायदान की महान परंपरा रही है। इंदिराजी (पूर्व प्रधानमंत्री) के दौर में यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ देश के चीफ जस्टिस थे और वे मौजूदा चीफ जस्टिस के पिताश्री हैं। संपादकीय में कहा गया है कि चंद्रचूड़ महाराष्ट्र के सुपुत्र हैं, इसलिए यह निश्चित था कि वे किसी दबाव या राजनीतिक प्रलोभन में नहीं आएंगे।

ईवीएम पर संपादकीय में कहा गया है कि ‘ईवीएम’ के खिलाफ देश और दिल्ली में जबरदस्त बड़े आंदोलन हुए। ‘ईवीएम’ लोकतंत्र का हत्यारा है, इसके सारे सबूत देने के बावजूद ‘ईवीएम’ का विरोध करने वाली सभी याचिकाएं खारिज कर दी गईं। सरकार बिल्कुल यही चाहती थी।

संपादकीय कहता है कि सुप्रीम कोर्ट ईडी, सीबीआई के मनमाने व्यवहार पर अंकुश लगाने में भी कमजोर रहा।

भाषा सुरभि नरेश

नरेश