मुंबई, 10 नवंबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि कोई कार्यवाही केवल एक पक्ष के आरोप के आधार पर किसी अन्य न्यायिक अधिकारी को नहीं सौपी जा सकती। अदालत ने लीलावती अस्पताल के ट्रस्ट संस्थापक की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें चैरिटी आयुक्त के खिलाफ पक्षपात का आरोप लगाया गया था।
न्यायमूर्ति शर्मिला देशमुख की एकल पीठ ने पिछले महीने न्यासियों के बीच विवाद से संबंधित कार्यवाही को चैरिटी आयुक्त से किसी अन्य न्यायिक अधिकारी को स्थानांतरित करने से इनकार करते हुए कहा था कि पक्षपात या पूर्वाग्रह की कोई आशंका नहीं है। उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रतिकूल आदेश देना कार्यवाही को किसी अन्य न्यायिक अधिकारी को सौंपने के अनुरोध का आधार नहीं हो सकता।
अदालत ने कहा कि न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि आशंका का कोई वाजिब कारण होना चाहिए। अदालत ने कहा कि अनुकूल माहौल नहीं होना, हस्तांतरण का आधार नहीं हो सकता।
अदालत ने लीलावती कीर्तिलाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट की संस्थापक चारु मेहता और स्थायी ट्रस्टी राजेश मेहता तथा प्रशांत मेहता द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पक्षपात का आरोप लगाते हुए ट्रस्ट से संबंधित सभी कार्यवाही को चैरिटी आयुक्त से किसी अन्य न्यायिक अधिकारी को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया था।
याचिकाकर्ता ट्रस्ट और लीलावती अस्पताल के नियंत्रण को लेकर अन्य न्यासियों के साथ विवाद में उलझे हुए हैं। न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मेरे विचार में याचिकाकर्ताओं की आशंका निराधार है।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ चैरिटी आयुक्त के आदेश को ‘‘पूर्वाग्रह मानसिकता का परिणाम नहीं कहा जा सकता है और यह इस आशंका का आधार नहीं बन सकता है कि कार्यवाही का निर्णय करते समय चैरिटी आयुक्त द्वारा न्याय नहीं किया जाएगा।’’
इससे पहले, चैरिटी आयुक्त ने ट्रस्ट की कुछ संशोधित रिपोर्ट को अस्थायी रूप से स्वीकार कर लिया था और याचिकाकर्ताओं सहित न्यासियों के खिलाफ जांच शुरू कर दी थी तथा जांच लंबित रहने तक चारु मेहता को छोड़कर शेष न्यासियों को निलंबित कर दिया था।
मेहता और दो अन्य न्यासियों ने चैरिटी आयुक्त के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।
भाषा आशीष संतोष
संतोष
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