महाराष्ट्र: कभी कांग्रेस का गढ़ रहे तटीय क्षेत्रों में अब प्रतिद्वंद्वी शिवसेना के बीच मुकाबला

महाराष्ट्र: कभी कांग्रेस का गढ़ रहे तटीय क्षेत्रों में अब प्रतिद्वंद्वी शिवसेना के बीच मुकाबला

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  • Publish Date - October 18, 2024 / 04:00 PM IST,
    Updated On - October 18, 2024 / 04:00 PM IST

(मनीषा रेगे)

मुंबई, 18 अक्टूबर (भाषा) मुंबई से लेकर सिंधुदुर्ग के सुदूर दक्षिणी जिले तक फैला महाराष्ट्र का तटीय क्षेत्र कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पार्टी अविभाजित शिवसेना के हाथों अपनी राजनीतिक जमीन खो बैठी।

एक समय में तटीय कोंकण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था मुंबई से भेजे जाने वाले ‘मनीऑर्डर’ पर निर्भर मानी जाती थी क्योंकि 1960 में महाराष्ट्र को राज्य का दर्जा मिलने के बाद इस क्षेत्र के अधिकांश निवासी काम और व्यवसाय के लिए मुंबई चले गए थे। हालांकि, अब स्थिति वैसी नहीं रही। राज्य की कुल 288 विधानसभा सीटों में से 75 सीटें कोंकण क्षेत्र में हैं, जिनमें मुंबई की 36 सीटें भी शामिल हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि 20 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में किस गठबंधन – सत्तारूढ़ महायुति या विपक्षी महाविकास आघाड़ी (एमवीए) – का शासन रहेगा, यह तय करने में इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।

पूर्व मुख्यमंत्री और रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग से भाजपा के लोकसभा सदस्य नारायण राणे ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि कोंकण अब आत्मनिर्भर हो गया है और मछली, आम और काजू के निर्यात के बलबूते समृद्ध हो रहा है।

वर्ष 1990 में पहली बार सिंधुदुर्ग की मालवान सीट से शिवसेना विधायक के रूप में जीतने वाले 72 वर्षीय राणे ने कहा, ‘‘युवा उद्यमशीलता को अपना रहे हैं। हवाई और रेल संपर्क बढ़ने से बुनियादी ढांचे का भी विस्तार हुआ है। पर्याप्त बिजली और पानी उपलब्ध है। इस क्षेत्र में जबरदस्त आर्थिक परिवर्तन हुआ है।’’

राजनेता ने कहा, ‘‘मैं सिंधुदुर्ग की तरह रत्नागिरी को भी पर्यटन जिले के रूप में विकसित करना चाहता हूं।’’

पार्टी छोड़ने से पहले अविभाजित शिवसेना को इस क्षेत्र में स्थापित करने का श्रेय राणे को दिया जाता है।

राज्य मंत्री छगन भुजबल ने कहा कि पिछले पांच वर्षों के राजनीतिक बदलाव का ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों पर अधिक प्रभाव पड़ेगा।

भुजबल 1985 में मुंबई (मजगांव सीट) से ‘मशाल’ चुनाव चिह्न पर निर्वाचित होने वाले एकमात्र शिवसेना विधायक थे। वह अब अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा के नेता हैं।

भुजबल ने बताया कि अविभाजित शिवसेना और कांग्रेस कभी इस क्षेत्र में कट्टर प्रतिद्वंद्वी हुआ करती थीं। उन्होंने कहा कि 2022 में शिवसेना में विभाजन के बाद, कोंकण संभाग का हिस्सा और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के राजनीतिक क्षेत्र ठाणे जिले में प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच मुकाबला देखने को मिलेगा।

भुजबल ने दावा किया, ‘‘मुझे लगता है कि 30 से अधिक निर्दलीय उम्मीदवार (पूरे महाराष्ट्र में) चुनकर आएंगे और अगली सरकार बनाने की कुंजी उनके पास होगी।’’

‘बाल ठाकरे एंड द राइज ऑफ द शिवसेना’ पुस्तक के लेखक एवं पत्रकार वैभव पुरंदरे ने बताया कि 1966 में स्थापित क्षेत्रीय पार्टी शिवसेना, मुंबई और कोंकण में मजबूत हुई, जहां पहले वामपंथियों और समाजवादियों का महत्वपूर्ण प्रभाव हुआ करता था।

पुरंदरे ने कहा, ‘‘शिवसेना ने कांग्रेस के समर्थन से वामपंथियों का मुकाबला किया। जब वामपंथियों का सफाया हो गया, तो मुंबई के मिल मजदूर, जो पहले वामपंथियों के साथ जुड़े हुए थे, शिवसेना के पाले में आ गए। ये मिल मजदूर कोंकण से मुंबई में काम करने आए थे, इसलिए कोंकण में उनके परिवारों ने भी शिवसेना का समर्थन किया।’’

1980 के दशक के मध्य में शिवसेना ने हिंदुत्व को अपनाया और कांग्रेस की एक प्रमुख प्रतिद्वंद्वी बन गई, जो ‘‘धर्मनिरपेक्षता’’ से प्रेरित थी। 1980 के दशक तक, शिवसेना ने मुंबई में बड़ी बढ़त हासिल कर ली थी, और 1990 तक इसने हिंदुत्व के आधार पर भाजपा के साथ गठबंधन बना लिया। 1995 में, शिवसेना-भाजपा ने राज्य में सरकार बनाई थी।

आंकड़ों से पता चलता है कि कोंकण में कांग्रेस का पतन 1978 में शुरू हुआ। शिवसेना ने कांग्रेस का विरोध करने वाले वामपंथियों और अन्य छोटे दलों पर बढ़त बनाई और कांग्रेस के प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरी। 1962 में, तटीय क्षेत्र में 57 विधानसभा सीटें थीं, जो अब बढ़कर 75 हो गई हैं।

वर्ष 1962 से 1978 तक, कांग्रेस ने मुंबई और कोंकण के अन्य हिस्सों में अपना दबदबा बनाए रखा। कांग्रेस का पतन 1978 के विधानसभा चुनाव से शुरू हुआ, जो आपातकाल हटने के बाद पहला चुनाव था, और मुंबई में इसका सफाया हो गया।

हालांकि, बाद के वर्षों में कांग्रेस ने इस क्षेत्र में अपनी खोई हुई जमीन वापस पा ली। दिग्गज नेता शरद पवार ने 1999 में कांग्रेस छोड़कर राकांपा का गठन किया। इसके बाद इस क्षेत्र में कांग्रेस और भी कमजोर हो गई, खासकर ठाणे जिले में। 2014 के बाद से, भाजपा तटीय क्षेत्र में प्रमुख ताकत के रूप में उभरी है।

वर्ष 2019 में उस समय राजनीति स्थिति ने एक बार फिर करवट ली, जब एक समय की प्रतिद्वंद्वी शिवसेना और कांग्रेस सहयोगी बन गईं। इसके बाद शिवसेना में विभाजन हुआ और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना (यूबीटी) अस्तित्व में आई।

अब सभी की निगाहें एकनाथ शिंदे नीत शिवसेना और प्रतिद्वंदी उद्धव ठाकरे की पार्टी के तटीय क्षेत्र के चुनावी प्रदर्शन पर टिकी हैं।

महाराष्ट्र में 20 नवंबर को मतदान होगा और मतगणना 23 नवंबर को होगी।

भाषा शफीक नरेश

नरेश