महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव:शिवसेना, राकांपा में फूट के बाद सहयोगी दलों के बीच तालमेल की आजमाइश

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव:शिवसेना, राकांपा में फूट के बाद सहयोगी दलों के बीच तालमेल की आजमाइश

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  • Publish Date - October 15, 2024 / 06:15 PM IST,
    Updated On - October 15, 2024 / 06:15 PM IST

मुंबई, 15 अक्टूबर (भाषा) शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) में फूट के बाद छह प्रमुख दलों के मैदान में उतरने, मराठा आरक्षण को लेकर जारी आंदोलन और विपक्षी दलों के बढ़ते उत्साह के बीच महाराष्ट्र में इस बार विधानसभा चुनाव में बेहद दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है।

निर्वाचन आयोग ने मंगलवार को घोषणा की कि उत्तर प्रदेश (403 विधानसभा सीट) के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी विधानसभा (महाराष्ट्र-288 सीट) के लिए 20 नवंबर को एक चरण में चुनाव कराए जाएंगे। मतगणना 23 नवंबर को होगी।

कांग्रेस सांसद वसंत चव्हाण के निधन से खाली हुई नांदेड़ लोकसभा सीट पर उपचुनाव भी 20 नवंबर को होगा।

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन के खराब प्रदर्शन के बाद विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को लुभाने के लिए ‘लाडकी बहिन योजना’ से उम्मीद कर रही है, जिसके तहत गरीब महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है। 46,000 करोड़ रुपये प्रति वर्ष की लागत वाली इस कल्याणकारी योजना को महायुति गठबंधन के लिए ‘गेम चेंजर’ के रूप में देखा जा रहा है।

महायुति गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), एकनाथ शिंदे नीत शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) शामिल हैं। अजित पवार अपने चाचा शरद पवार से बगावत करते हुए लगभग एक साल पहले शिंदे सरकार में शामिल हुए थे।

सरकार का लक्ष्य ढाई करोड़ महिलाओं को ‘लाडकी बहिन योजना’ के दायरे में लाना है। महाराष्ट्र में करीब 4.5 करोड़ महिला मतदाता हैं।

महाराष्ट्र में पिछले पांच वर्षों में प्रमुख दलों में फूट और नये गठबंधन बनने से सियासी समीकरणों में आए व्यापक बदलाव के बीच सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति और विपक्षी गठबंधन एमवीए (महा विकास आघाडी) में सीधा मुकाबला देखने को मिल सकता है।

एमवीए में कांग्रेस, उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा (एसपी) शामिल हैं।

दोनों ही गठबंधन ने अभी अपने सीट बंटवारे समझौते की घोषणा नहीं की है।

महाराष्ट्र में 2022 में शिवसेना और 2023 में राकांपा में विभाजन के बाद होने वाले पहले विधानसभा चुनाव दोनों प्रमुख गठबंधन की ताकत की आजमाइश होंगे। ये चुनाव घटक दलों की सहयोगी पार्टियों के लिए वोट जुटाने की क्षमता को भी आंकेंगे।

लोकसभा चुनाव में भले ही महायुति गठबंधन (48 में से 17 सीटों पर जीत) को झटका लगा हो और एमवीए (30 सीट पर जीत) ने अच्छा प्रदर्शन किया हो, लेकिन विधानसभा चुनाव के सियासी समीकरण जुदा होंगे, क्योंकि प्रचार में राज्य और स्थानीय स्तर के मुद्दे हावी रहेंगे।

महाराष्ट्र के सियासी समीकरण कभी इतने खंडित नहीं रहे हैं और इस बार चुनाव मैदान में छह प्रमुख दल-भाजपा, शिवसेना, राकांपा, कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और राकांपा (एसपी) मतदाताओं को रिझाने का प्रयास करेंगे।

महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले पांच वर्षों में कई अप्रत्याशित घटनाक्रम देखने को मिले, जिनमें चुनाव पूर्व गठबंधन का टूटना, तीन सरकारें बनना (जिनमें तीन दिन की सरकार भी शामिल है) और दो प्रमुख दलों का दो फाड़ होना तथा निर्वाचन आयोग का बागी गुट को “असली” का दर्जा दिया जाना शामिल है।

दशहरा (12 अक्टूबर) के दिन महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और वरिष्ठ राकांपा नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या ने चुनाव से पहले महायुति सरकार की किरकिरी करने के साथ ही राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं।

विपक्ष ने बाबा सिद्दीकी की हत्या को लेकर सरकार, खासकर राज्य के गृह मंत्री देवेंद्र फडणवीस पर निशाना साधने और जन सुरक्षा एवं शासन से जुड़े मुद्दे उठाने में देर नहीं की।

पिछले पखवाड़े में शिंदे सरकार ने मुंबई के पांचों प्रवेश बिंदुओं पर हल्के मोटर वाहनों के लिए टोल शुल्क माफी सहित 1,500 फैसले लिए हैं। इनमें से लगभग 160 निर्णय राज्य मंत्रिमंडल की बैठकों में लिए गए।

अजित पवार के सत्तारूढ़ गठबंधन से अलग होने की अटकलों के बीच वह सरकार का हिस्सा बने हुए हैं। महाराष्ट्र जून 2022 में सत्ता परिवर्तन का गवाह बना था, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार शिवसेना में बगावत के कारण गिर गई थी। इसके बाद शिंदे भाजपा के समर्थन से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने।

वर्ष 2019 के विधानसभा चुनावों में कई समीकरण बदल दिए। सबसे पहले मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी को लेकर शिवसेना-भाजपा के बीच चुनाव-पूर्व गठबंधन टूट गया। इसके बाद शिवसेना ने उद्धव के नेतृत्व में सरकार बनाने के लिए अपने पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों-कांग्रेस और राकांपा से हाथ मिला लिया।

कांग्रेस नेता रत्नाकर महाजन ने कहा कि भाजपा का ‘वोट बैंक’ सिकुड़ रहा है, जबकि कृषि संकट, बेरोजगारी और महंगाई जैसे प्रमुख मुद्दे उठाने के कारण उनकी पार्टी के जनाधार में वृद्धि हो रही है।

महाजन ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में अपने उत्साहजनक प्रदर्शन (13 सीटों पर जीत) से आत्ममुग्ध नहीं है और वह लगातार जनहित के मुद्दे उठा रही है।

उन्होंने कहा कि सिंधुदुर्ग जिले में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा का ढहना, कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति, मराठा आरक्षण आंदोलन और कृषि संकट कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें विपक्ष लगातार रेखांकित कर रहा है।

चुनाव विश्लेषकों के मुताबिक, मराठा आरक्षण की मांग ने लोकसभा चुनावों में महायुती गठबंधन को नुकसान पहुंचाया था और यह अभी भी बड़े पैमाने पर मतदाताओं को प्रभावित करती है।

वर्ष 2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा 105 सीट पर कब्जे के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, जबकि उसकी तत्कालीन सहयोगी शिवसेना के खाते में 56 सीट गई थीं। कांग्रेस और उसकी सहयोगी राकांपा ने 125-125 सीट पर चुनाव लड़ा था तथा क्रमश: 44 और 54 सीट पर जीत दर्ज की थी।

भाषा पारुल नरेश

नरेश