वैध धार्मिक प्रथाओं को काला जादू अधिनियम के तहत दंडनीय नहीं माना सकता: उच्च न्यायालय
वैध धार्मिक प्रथाओं को काला जादू अधिनियम के तहत दंडनीय नहीं माना सकता: उच्च न्यायालय
मुंबई, तीन अप्रैल (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने एक स्वयंभू धर्मगुरु को आपराधिक मामले से मुक्त करने के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि महाराष्ट्र के ‘काला जादू अधिनियम’ का उद्देश्य हानिकारक प्रथाओं पर अंकुश लगाना है, लेकिन यह ‘वैध धार्मिक प्रथाओं’ पर रोक नहीं लगाता।
अपने उपदेशों के माध्यम से काले जादू को बढ़ावा देने के आरोपी गुजरात के रमेश मोदक उर्फ शिवकृपानंद स्वामी को निचली अदालत ने बरी कर दिया था, जिसके बाद शिकायतकर्ता ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति आर. एन. लड्ढा ने दो अप्रैल को निचली अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा कि सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद यह आदेश पारित किया गया था।
उच्च न्यायालय ने कहा कि महाराष्ट्र मानव बलि एवं अन्य अमानवीय, दुष्ट एवं अघोरी प्रथाओं और काला जादू निवारण एवं उन्मूलन अधिनियम, 2013 का उद्देश्य हानिकारक प्रथाओं पर अंकुश लगाना है, लेकिन यह वैध धार्मिक शिक्षाओं पर लागू नहीं होता।
उच्च न्यायालय ने कहा कि शिकायतकर्ता ने स्वेच्छा से उन सेमिनार में भाग लिया था, जहां कथित तौर पर आरोपी की सीडी चलाई गई थी। अदालत ने कहा कि यह निर्विवाद तथ्य है कि मोदक ने इन सेमिनार का आयोजन नहीं किया था।
पुणे के निवासी रोहन कुलकर्णी ने 2014 में अपनी शिकायत में मोदक और उनके सहयोगी नरेंद्र पाटिल पर आध्यात्मिक मार्गदर्शन एवं करियर में सफलता का झूठा वादा करके कार्यशालाओं के माध्यम से उन्हें धोखा देने का आरोप लगाया था।
निचली अदालत ने 2020 में मोदक को मामले से बरी करते हुए कहा था कि अधिनियम के तहत उन पर लगे आरोप सही नहीं हैं।
भाषा जोहेब नेत्रपाल
नेत्रपाल

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