मुंबई, 11 अप्रैल (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को 24 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करने से संबंधित मामलों से निपटने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) बनाने का निर्देश दिया है।
मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति नितिन साम्ब्रे की खंडपीठ ने पांच अप्रैल के अपने आदेश में कहा कि गर्भ का चिकित्सकीय समापन (एमटीपी) संशोधन अधिनियम भ्रूण में गंभीर असामान्यताओं के मामलों में 24 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देता है।
अधिनियम के संशोधित प्रावधानों के तहत, राज्य सरकार को प्रत्येक जिले में मेडिकल बोर्ड का गठन करना आवश्यक है, जिसके पास गर्भधारण अवधि के 24 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने या अस्वीकार करने की शक्ति तथा विशेषाधिकार है।
पीठ एक महिला की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उसने भ्रूण में असामान्यताओं के कारण 32 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की मांग की थी।
याचिका के अनुसार, वर्धा के सामान्य अस्पताल ने महिला के 24 सप्ताह के गर्भ की जांच के दौरान भ्रूण की असामान्यताओं के बारे में सूचित किया।
पीठ ने महिला को राहत देते हुए कहा कि यह परेशान करने वाली बात है कि उसे (महिला को) सीधे मेडिकल बोर्ड के पास भेजने के बजाय, अस्पताल ने याचिकाकर्ता से गर्भ समाप्त करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने को कहा।
उच्च न्यायालय ने कहा कि संशोधित एमटीपी अधिनियम के प्रावधान 24 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देते हैं, बशर्ते मेडिकल बोर्ड इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि भ्रूण में पर्याप्त असामान्यताएं हैं।
अदालत ने राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा शिक्षा और औषधि विभाग को एक एसओपी तैयार करने का निर्देश दिया, जिसे पूरे महाराष्ट्र के सभी सरकारी अस्पतालों और चिकित्सा महाविद्यालयों को जारी किया जाएगा।
अदालत ने मामले को 12 जून को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा तैयार की जाने वाली यह मानक संचालन प्रक्रिया, राज्य सरकार द्वारा दो महीने की अवधि के भीतर तैयार और अधिसूचित की जाएगी।’
पीठ ने महिला को गर्भपात की इजाजत दे दी और वर्धा के सामान्य अस्पताल को इसका खर्च वहन करने का निर्देश दिया।
भाषा सुरेश माधव
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