इतिहासकार ने लंदन से लाए जा रहे ‘बघनखा’ को असली नहीं बताया, सरकार ने दावे का खंडन किया

इतिहासकार ने लंदन से लाए जा रहे ‘बघनखा’ को असली नहीं बताया, सरकार ने दावे का खंडन किया

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  • Publish Date - July 8, 2024 / 09:53 PM IST,
    Updated On - July 8, 2024 / 09:53 PM IST

मुंबई, आठ जुलाई (भाषा) ‘बघनखा’ या बाघ के पंजे के आकार वाला छत्रपति शिवाजी का हथियार जिसे महाराष्ट्र सरकार लंदन स्थित संग्रहालय से लाने का प्रयास कर रही है वह ‘असली’ नहीं है। इतिहासकार इंद्रजीत सावंत ने सोमवार को यह दावा करते हुए कहा कि महान शासक द्वारा इस्तेमाल किया गया यह ‘बघनखा’’ राज्य के सतारा में ही मौजूद है, लेकिन मंत्री शंभुराज देसाई ने कहा कि ‘बघनखा’ लंदन में ही है।

राज्य सरकार ने पिछले साल ‘बघनखा’ को हासिल करने के लिए लंदन स्थित संग्रहालय के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू)पर हस्ताक्षर किए थे। मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी ने इसका इस्तेमाल 1659 में बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान को मारने के लिए किया था।

‘बघनखा’ एक योद्धा राजा की दृढ़ता और वीरता का स्थायी और आदरयुक्त प्रतीक है क्योंकि इसका उपयोग शारीरिक रूप से विशाल प्रतिद्वंद्वी को वश में करने और मारने के लिए किया जाता था।

सावंत ने कोल्हापुर में संवाददाताओं से कहा, ‘‘बघनखा’ को तीन साल के लिए 30 करोड़ रुपये के ऋण समझौते पर महाराष्ट्र लाया जा रहा है। मेरे पत्र के जवाब में, लंदन स्थित विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय ने कहा है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यह ‘बघनखा’ (जो उसके पास है) छत्रपति शिवाजी महाराज का है।’’

सावंत ने दावा किया, ‘‘मंत्री सुधीर मुनगंटीवार के नेतृत्व में महाराष्ट्र की टीम, जो ऋण समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए लंदन गई थी, को यह जानकारी प्रदर्शित करने के लिए कहा गया है। असली वाघ नख सतारा में ही है।’’

एक अन्य शोधकर्ता पांडुरंग बालकावड़े ने एक मराठी टीवी चैनल को बताया कि प्रतापसिंह छत्रपति ने 1818 और 1823 के बीच ब्रिटिश अधिकारी ‘ग्रांट डफ’ को अपने निजी संग्रह से ‘बघनखा’ दिया था। उन्होंने कहा कि डफ के वंशजों ने इसे संग्रहालय को सौंप दिया था।

हालांकि, सावंत ने कहा कि डफ के भारत छोड़ने के बाद प्रतापसिंह छत्रपति ने कई लोगों को ‘बघनखा’ दिखाया।

इस मुद्दे पर मंत्री शंभुराज देसाई ने कहा कि यह सर्वविदित है कि ‘भवानी तलवार’ और ‘बघनखा’ लंदन में हैं।

देसाई ने कहा, ‘‘हमारी सरकार ने विवरणों का सत्यापन किया और फिर एमओयू पर हस्ताक्षर किए। यदि इतिहासकारों की कोई अन्य राय है, तो हमारी सरकार इस मुद्दे को स्पष्ट करेगी।’’

भाषा संतोष माधव

माधव