मुंबई, चार जुलाई (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि दोषसिद्धि के बाद किसी व्यक्ति को सार्वजनिक पद पर रहने से अयोग्य ठहराना लोकतांत्रिक प्रक्रिया की “अखंडता और विश्वसनीयता” बनाए रखने के लिए है।
अदालत ने 117 करोड़ रुपये के नागपुर जिला केंद्रीय सहकारी बैंक लिमिटेड (एनडीसीसी बैंक) घोटाला मामले में कांग्रेस नेता सुनील केदार को दी गयी सजा और दोषसिद्धि पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के की एकल पीठ ने केदार की उस अर्जी को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने दिसंबर 2023 में मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा उन्हें सुनायी गयी पांच साल की सजा को निलंबित करने और दोषसिद्धि पर रोक लगाने की मांग की थी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री केदार पर निजी दलालों के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के बहाने नागपुर जिला केंद्रीय सहकारी बैंक लिमिटेड (एनडीसीसी बैंक) के 117 करोड़ रुपये के धन की हेराफेरी करने का आरोप लगाया गया था। उस समय केदार बैंक के अध्यक्ष थे।
मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा दोषसिद्धि के बाद केदार को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत विधायक पद से अयोग्य घोषित कर दिया गया।
केदार ने अपनी अर्जी में कहा कि अगर उनकी सजा पर रोक नहीं लगाई गई तो उनकी विधायक पद की अयोग्यता जारी रहेगी। उन्होंने यह भी दावा किया कि इससे न केवल उनके सार्वजनिक जीवन में बने रहने के अधिकार पर असर पड़ेगा, बल्कि उन लोगों के अधिकार भी प्रभावित होंगे जिन्होंने उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए वोट दिया था।
उच्च न्यायालय ने हालांकि कहा कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले व्यक्ति को अयोग्य ठहराने के प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वे सार्वजनिक पद पर निर्वाचित न हों।
भाषा प्रशांत धीरज
धीरज
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