अदालत ने मुंबई के कॉलेज में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया

अदालत ने मुंबई के कॉलेज में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया

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  • Publish Date - June 26, 2024 / 10:23 PM IST,
    Updated On - June 26, 2024 / 10:23 PM IST

मुंबई, 26 जून (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर के एक कॉलेज द्वारा हिजाब, बुर्का और नकाब पर प्रतिबंध लगाने के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा कि ऐसे नियम छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करते हैं।

न्यायमूर्ति ए.एस. चांदुरकर और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की खंडपीठ ने कहा कि ड्रेस कोड का उद्देश्य अनुशासन बनाए रखना है जो कि शैक्षणिक संस्थान की ‘‘स्थापना और प्रशासन’’ के लिए कॉलेज के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।

उच्च न्यायालय ने नौ छात्राओं द्वारा प्रतिबंध के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ‘ड्रेस कोड’ सभी छात्राओं पर लागू है, चाहे उनकी जाति या धर्म कुछ भी हो।

छात्राओं ने इस महीने की शुरुआत में उच्च न्यायालय का रुख कर ‘चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी’ के एन. जी. आचार्य और डी. के. मराठे कॉलेज द्वारा जारी उस निर्देश को चुनौती दी थी, जिसमें हिजाब, नकाब, बुर्का, स्टोल, टोपी पहनने और किसी भी तरह का बैज लगाने पर प्रतिबंध लगाने वाले ‘ड्रेस कोड’ को लागू किया गया था।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि यह नियम उनके धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकार, निजता के अधिकार और ‘‘पसंद के अधिकार’’ का उल्लंघन करता है।

अदालत ने कहा कि वह यह नहीं समझ पा रही है कि कॉलेज द्वारा ‘ड्रेस कोड’ निर्धारित करने से संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 25 (धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता) का उल्लंघन कैसे होता है।

न्यायाधीशों ने कहा, ‘हमारे विचार में निर्धारित ‘ड्रेस कोड’ को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1) (ए) और अनुच्छेद 25 के तहत याचिकाकर्ताओं के अधिकारों का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है।’

पीठ ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि जिसमें कहा गया कि हिजाब, नकाब और बुर्का पहनना उनके धर्म का अनिवार्य हिस्सा है।

भाषा

योगेश प्रशांत

प्रशांत