पुणे, 28 जनवरी (भाषा) यहां सिंहगढ़ रोड क्षेत्र में ‘गुइलेन-बैरे सिंड्रोम’ (जीबीएस) के कई मामले सामने आने के बाद स्थानीय निवासियों ने मंगलवार को दावा किया कि संभवतः निजी भूमि पर स्थित एक कुएं के दूषित पानी के कारण यह बीमारी फैली।
विडंबना यह है कि प्रभावित क्षेत्र खड़कवासला बांध से चार किलोमीटर के दायरे में हैं, जो पुणे शहर के प्रमुख जल स्रोतों में से एक है, लेकिन स्थानीय लोगों का दावा है कि उन्हें स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की कोई सुविधा नहीं है।
महाराष्ट्र के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, पुणे में जीबीएस के 111 मामले सामने आए हैं, जिनमें से 80 मामले पांच किलोमीटर के दायरे में हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मंगलवार को मुंबई में एक बैठक में स्थिति की समीक्षा की। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को जीबीएस के मरीजों के इलाज के लिए विशेष व्यवस्था करने का निर्देश दिया।
फडणवीस ने कहा कि उचित उपचार के लिए पुणे में कमला नेहरू अस्पताल और पिंपरी-चिंचवाड़ में यशवंतराव चव्हाण मेमोरियल अस्पताल को जीबीएस रोगियों के लिए दो समर्पित अस्पताल के रूप में नामित किया गया है। उन्होंने लोगों से पानी उबालकर पीने की अपील की क्योंकि जीबीएस मुख्य रूप से दूषित पानी या बिना पके मांस के कारण होता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि जीबीएस रोगियों के उपचार को महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना के तहत कवर किया जाएगा।
निवासियों ने बताया कि खड़कवासला जलाशय से निकलने वाली बंद पाइपलाइन से अनुपचारित पानी लिया जाता है और नांदेड़ गांव के एक कुएं में संग्रहित किया जाता है।
उन्होंने बताया कि इसके बाद बिना किसी शुद्धिकरण प्रक्रिया के इसकी किरकटवाड़ी, नांदेड़, धायरी, कोल्हेवाड़ी और खड़कवासला के कुछ हिस्सों में आपूर्ति की जाती है।
पहले इन गांवों/इलाकों में स्वतंत्र ग्राम पंचायतें थीं। पिछले कुछ सालों में इन्हें पुणे नगर निगम (पीएमसी) में शामिल कर लिया गया।
किरकटवाड़ी में अर्बनग्राम सोसाइटी के निवासी उमेश ने आरोप लगाया कि जब यह क्षेत्र ग्राम पंचायत के अधीन था, तो पानी की टंकियों की नियमित सफाई होती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होता।
भाषा प्रशांत पवनेश
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