जालना: Bhagwat Karad opposed Maratha reservation पूर्व केंद्रीय मंत्री भागवत कराड ने सोमवार को कहा कि मराठों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के तहत आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। राज्यसभा सदस्य कराड ने कहा कि ओबीसी आरक्षण कम न करने का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का रुख बिल्कुल स्पष्ट है। उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘‘महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठों को दिया 10 प्रतिशत का आरक्षण कानूनी कसौटी पर खरा उतरेगा। एक ओबीसी होने के नाते, मैं ओबीसी आरक्षण के लाभ मराठा समुदाय को देने का विरोध करता हूं।’’ मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे मराठाओं को कुनबी जाति का प्रमाणपत्र दिए जाने के बाद उन्हें ओबीसी के तहत आरक्षण दिए जाने की मांग कर रहे हैं। ओबीसी संगठन इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं।
Bhagwat Karad opposed Maratha reservation बता दें कि मराठा समुदाय ओबीसी के कोटे से आरक्षण की मांग कर रहा है। हालांकि पहले अलग आरक्षण की मांग की गई थी। मराठा समुदाय के लिए आरक्षण पहले 2014 फिर 2018 में दिया गया। लेकिन यह आरक्षण अदालत में टिक नहीं पाया। इसके बाद मराठा को ओबीसी आरक्षण में शामिल करने की मांग होने लगी। इसे लेकर महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले सियासत भी खूब हो रही है।
Politics on Maratha Reservation मराठा खुद को कुनबी समुदाय का बताते हैं। इसी के आधार पर वे सरकार से आरक्षण की मांग कर रहे हैं। इसकी नींव पड़ी 26 जुलाई 1902 को, जब छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी ने एक फरमान जारी कर कहा कि उनके राज्य में जो भी सरकारी पद खाली हैं, उनमें 50% आरक्षण मराठा, कुनबी और अन्य पिछड़े समूहों को दिया जाए। इसके बाद 1942 से 1952 तक बॉम्बे सरकार के दौरान भी मराठा समुदाय को 10 साल तक आरक्षण मिला था। लेकिन, फिर मामला ठंडा पड़ गया। आजादी के बाद मराठा आरक्षण के लिए पहला संघर्ष मजदूर नेता अन्नासाहेब पाटिल ने शुरू किया। उन्होंने ही अखिल भारतीय मराठा महासंघ की स्थापना की थी।
22 मार्च 1982 को अन्नासाहेब पाटिल ने मुंबई में मराठा आरक्षण समेत अन्य 11 मांगों के साथ पहला मार्च निकाला था। उस समय महाराष्ट्र में कांग्रेस (आई) सत्ता में थी और बाबासाहेब भोसले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। विपक्षी दल के नेता शरद पवार थे। शरद पवार तब कांग्रेस (एस) पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने आश्वासन तो दिया, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाए। इससे अन्नासाहेब नाराज हो गए। अगले ही दिन 23 मार्च 1982 को उन्होंने अपने सिर में गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इसके बाद राजनीति शुरू हो गई। सरकारें गिरने-बनने लगीं और इस राजनीति में मराठा आरक्षण का मुद्दा ठंडा पड़ गया।