मुंबई, 28 जनवरी (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने कहा कि किसी व्यक्ति को केवल इसलिए ऐहतियाती हिरासत में रखना क्योंकि उसने जिस राजनीतिक रैली में भाग लिया था वह हिंसक हो गई, मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है तथा किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करना उचित नहीं ठहराया जा सकता।
न्यायमूर्ति विभा कांकणवाड़ी और न्यायमूर्ति रोहित जोशी की खंडपीठ ने मजिस्ट्रेट अदालत और राज्य सरकार के 2024 के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें 20 वर्षीय छात्र को 2023 में मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन में भाग लेने के लिए उसके खिलाफ दर्ज दो प्राथमिकियों के आधार पर एहतियाती हिरासत में रखा गया था।
पीठ ने 14 जनवरी के अपने आदेश में कहा कि उक्त प्राथमिकी निर्विवाद रूप से मराठा आरक्षण के समर्थन में हुए विरोध प्रदर्शन के संबंध में दर्ज की गई थीं।
पीठ ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता (निखिल रंजवान) एक राजनीतिक रैली का हिस्सा था, जिसने भयंकर हिंसक रूप ले लिया।”
पीठ ने कहा कि रैली में 600 से अधिक लोगों ने भाग लिया था और पुलिस ने 50 लोगों की पहचान की। उसने कहा कि दो प्राथमिकियों के आधार पर ऐहतियाती हिरासत आदेश दाखिल करना एक “कठोर कार्रवाई” थी।
उच्च न्यायालय ने कहा, “केवल राजनीतिक रैली में भाग लेने के आधार पर किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का कोई औचित्य नहीं हो सकता, भले ही उसने (रैली ने) एक भयानक हिंसक रूप ले लिया हो।”
पीठ ने यह भी कहा कि ऐसा कोई दावा नहीं किया गया कि याचिकाकर्ता ने ही रैली/आंदोलन का आयोजन किया था।
याचिकाकर्ता निखिल रंजवान ने बीड जिला मजिस्ट्रेट और राज्य सरकार द्वारा क्रमशः फरवरी और नवंबर 2024 में पारित आदेशों को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें ऐहतियाती नजरबंदी में रखा गया था।
याचिकाकर्ता को एहतियातन हिरासत आदेश के बाद औरंगाबाद की हरसुल जेल में रखा गया है।
सरकार ने रंजवान की याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने विरोध प्रदर्शन के दौरान पथराव किया था।
भाषा प्रशांत वैभव
वैभव
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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)