बंबई उच्च न्यायालय ने फर्जी खबरों पर संशोधित आईटी नियमों को ‘असंवैधानिक’ करार दिया |

बंबई उच्च न्यायालय ने फर्जी खबरों पर संशोधित आईटी नियमों को ‘असंवैधानिक’ करार दिया

बंबई उच्च न्यायालय ने फर्जी खबरों पर संशोधित आईटी नियमों को ‘असंवैधानिक’ करार दिया

:   Modified Date:  September 26, 2024 / 04:04 PM IST, Published Date : September 26, 2024/4:04 pm IST

मुंबई, 26 सितंबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने तीसरे न्यायाधीश के फैसले के बाद बृहस्पतिवार को सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर फर्जी और झूठी सामग्री की पहचान करने और उसे विनियमित करने के उद्देश्य से संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी नियमों को औपचारिक रूप से रद्द कर दिया और इन्हें ‘‘असंवैधानिक’’ करार दिया।

न्यायमूर्ति ए. एस. चंदुरकर की एकल पीठ ने 20 सितंबर को कहा था कि संशोधित नियम अस्पष्ट और व्यापक होने के कारण न केवल व्यक्ति पर बल्कि सोशल मीडिया मध्यस्थ पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।

जनवरी में एक खंडपीठ ने संशोधित आईटी नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर खंडित निर्णय दिया था, जिसके बाद एक निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए न्यायमूर्ति चंदुरकर के पास इस मामले को भेजा गया था।

तीसरे न्यायाधीश के फैसले के बाद, न्यायमूर्ति ए. एस. गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने बृहस्पतिवार को हास्य कलाकार कुणाल कामरा, ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’, ‘न्यूज ब्रॉडकास्ट एंड डिजिटल एसोसिएशन’ और ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन’ द्वारा नए नियमों को चुनौती देते हुए दायर याचिकाओं पर औपचारिक रूप से फैसला सुनाया।

अदालत ने कहा, ‘‘बहुमत की राय को देखते हुए, नियम 3 (1) (5) को असंवैधानिक घोषित किया जाता है और इसे रद्द किया जाता है। तदनुसार याचिकाएं स्वीकार की जाती हैं।’’

जनवरी में न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति एन. गोखले की खंडपीठ द्वारा खंडित फैसला सुनाए जाने के बाद आईटी नियमों के खिलाफ याचिकाएं न्यायमूर्ति चंदुरकर के पास भेज दी गई थीं।

न्यायमूर्ति पटेल ने कहा था कि ये नियम ‘सेंसरशिप’ के समान हैं, लेकिन न्यायमूर्ति गोखले ने कहा था कि इनका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

न्यायमूर्ति चंदुरकर ने न्यायमूर्ति पटेल के साथ सहमति जताते हुए नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की आवश्यकता पर बल दिया।

विवाद का मुख्य कारण तथ्य जांच इकाई (एफसीयू) स्थापित करने का प्रावधान था, जिसका उद्देश्य सरकार के बारे में भ्रामक या झूठी मानी जाने वाली ऑनलाइन सामग्री की पहचान करना था।

अदालत ने याचिकाकर्ताओं के इस दावे से सहमति जताई कि इन नियमों का मौलिक अधिकारों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

केंद्र सरकार ने छह अप्रैल 2023 को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 में संशोधनों को लागू किया था, जिसमें सरकार से संबंधित फर्जी, झूठी या भ्रामक ऑनलाइन सामग्री को चिह्नित करने के लिए ‘एफसीयू’ का प्रावधान किया जाना भी शामिल था।

भाषा

देवेंद्र नेत्रपाल

नेत्रपाल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)