सेना ही एकमात्र जगह, जहां भेदभाव नहीं : एनडीए में महिलाओं के पहले बैच की कैडेट का दावा

सेना ही एकमात्र जगह, जहां भेदभाव नहीं : एनडीए में महिलाओं के पहले बैच की कैडेट का दावा

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  • Publish Date - March 28, 2025 / 10:51 AM IST,
    Updated On - March 28, 2025 / 10:51 AM IST

पुणे, 28 मार्च (भाषा) बटालियन कैडेट कैप्टन रितुल ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में महिलाओं को दाखिला देने के सितंबर 2021 के फैसले पर कहा कि शुरू में अनिश्चितता और असहजता थी, लेकिन संस्था ने हमें खुद को इसके अनुरूप ढालने और अद्यतन करने में मदद की।

राष्ट्रीय स्तर की एथलीट और राज्य स्तर की वादकर्ता (डिबेटर) रितुल और उनके पुरुष समकक्ष प्रिंस कुमार सिंह कुशवाहा ने बुधवार को यहां आयोजित कार्यक्रम ‘युगांतर 2047’ में 3,000 स्कूली छात्रों के साथ अपने अनुभव साझा किए।

रितुल ने कहा, ‘‘मैं हरियाणा से हूं, जहां सेना में शामिल होना बहुत गर्व की बात मानी जाती है। जब मैंने एनडीए में महिलाओं के लिए अवसर के बारे में पढ़ा, तो मुझे लगा कि यही मेरा रास्ता है। मेरे परिवार को इस निर्णय पर बहुत गर्व है। उनकी खुशी देखकर मेरा संकल्प और मजबूत हुआ।’’

एनडीए की महिला कैडेट के पहले बैच की सदस्य के रूप में, रितुल ने माना कि 75 वर्षों तक केवल पुरुषों को प्रशिक्षित करने वाले संस्थान में महिलाओं को शामिल करना न केवल कैडेटों के लिए, बल्कि प्रशिक्षकों और अधिकारियों के लिए भी एक नया अनुभव था।

उन्होंने कहा, ‘‘शुरू में अनिश्चितता और असहजता थी, लेकिन मैंने पिछले तीन वर्षों में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा है। अकादमी ने हमें पूरी तरह सिस्टम का हिस्सा बनाने के खातिर खुद को ढालने और अद्यतन करने में मदद की। शारीरिक अंतरों को ध्यान में रखते हुए प्रशिक्षण मॉड्यूल और व्यवस्था को समायोजित किया गया। इन बदलावों को निर्बाध रूप से लागू किया गया है।’’

रितुल ने कहा, ‘‘कई लड़कियां इसमें शामिल होने से हिचकिचा सकती हैं, क्योंकि 75 वर्षों तक यह केवल पुरुषों की अकादमी थी। लेकिन हमारे बैच के साथ यह बदल गया और मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं कि सेना ही एकमात्र ऐसी जगह है जहां कोई भेदभाव नहीं होता।’’

मथुरा के रहने वाले कुशवहा ने एनडीए की चयन प्रक्रिया को देश की सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण प्रक्रियाओं में से एक बताया।

उन्होंने कहा ‘‘हर साल करीब 18 से 20 लाख छात्र एनडीए में आने का सपना पाल कर तैयारी शुरू करते हैं। परीक्षा में आठ से दस लाख छात्र शामिल होते हैं। इनमें से केवल 8,000 ही लिखित परीक्षा पास कर पाते हैं। फिर एसएसबी के कठिन साक्षात्कार में केवल 300 से 350 छात्र ही पास होते हैं। एक बार प्रवेश के बाद कैडेट को दुनिया के सबसे कठिन प्रशिक्षण के दौर से गुजरना पड़ता है।’’

उन्होंने कहा ‘‘एनडीए में हम अक्सर कहते हैं ‘जितना रगड़ा, उतना तगड़ा’…. । ‘कैंप रोवर्स’ कम चुनौतीपूर्ण नहीं होता जब हमें रात को बिना सोए, बिना पानी के, बिना आराम किए, थकान के बावजूद विषम परिस्थितियों में जंगलों से गुजरना पड़ता है। ऐसे समय में कई बार लगता है कि अब इसे छोड़ दिया जाए।’’

कुशवाहा ने कहा ‘‘लेकिन हमसे आगे बढ़ चुके वरिष्ठ सहयोगी हमारा हौसला बढ़ाते हैं और हरसंभव सहयोग करते हैं। ’’

आगामी पासिंग आउट परेड में एनडीए से 17 महिला कैडेट का पहला बैच आने वाला है।

भाषा खारी मनीषा

मनीषा