मुंबई, 13 जनवरी (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय में सोमवार को एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि 11 जुलाई 2006 को लोकल ट्रेन में हुए विस्फोट के मामले के आरोपी निर्दोष होने के बावजूद पिछले 18 वर्षों से जेल में बंद हैं।
वरिष्ठ वकील ने उच्च न्यायालय से दोषियों को बरी करने तथा उनकी दोषसिद्धि को रद्द करने की अपील की।
न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति श्याम चंडाक की विशेष पीठ के सामने उम्रकैद के दो सजायाफ्ता मुजरिमों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील एस मुरलीधर ने एक ऐसे चलन का आरोप लगाया जहां आतंकवाद संबंधी मामलों की जांच करते हुए जांच एजेंसियां ‘सांप्रदायिक पक्षपात’ दर्शाती हैं।
यह विशेष पीठ पिछले पांच महीनों से विस्फोट मामले से संबंधित अपीलों पर दिन-प्रतिदिन सुनवाई कर रही है।
यहां 11 जुलाई 2006 को पश्चिमी लाइन पर विभिन्न स्थानों पर मुम्बई लोकल ट्रेन में सात विस्फोट हुए थे जिनमें 180 से अधिक लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हो गए थे।
सितंबर, 2015 में अधीनस्थ अदालत ने 12 आरोपियों को दोषी ठहराया था तथा उनमें से पांच को मृत्युदंड एवं सात को आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी थी।
इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने मृत्युदंड की पुष्टि के लिए उच्च न्यायालय में अपील दायर की, जो एक अनिवार्य कानूनी आवश्यकता है।
दोषियों ने भी अपनी दोषसिद्धि और सजा को चुनौती देते हुए अपील दायर की।
मुरलीधर ने विशेष पीठ के समक्ष कहा, ‘‘जांच में पक्षपात है। निर्दोष लोगों को जेल भेज दिया जाता है और कई वर्षों बाद सबूतों के अभाव में उन्हें रिहा कर दिया जाता है। इसका मतलब है कि उनके जीवन के बीत गये समय को लौटाया जाना संभव नहीं है।’’
उन्होंने आरोप लगाया कि जांच एजेंसी राज्य आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने आरोपियों को प्रताड़ित करके उनसे इकबालिया बयान हासिल किए हैं।
मुरलीधर ने कहा, ‘‘18 साल से ये आरोपी जेल में हैं। तब से वे एक दिन के लिए भी बाहर नहीं निकले हैं। उनके जीवन का अधिकांश हिस्सा खत्म हो चुका है।’’
उन्होंने दलील दी कि जनाक्रोश वाले मामलों में जांच एजेंसी यह मानकर जांच करती है कि आरोपी दोषी हैं।
भाषा
राजकुमार नरेश
नरेश