भोपाल: MP Politics इधर मध्यप्रदेश कांग्रेस भी लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार की वजह ढूंढने निकली है। दावा तो ये है कि जिम्मेदारों का बख्शा नहीं जाएगा, लेकिन सवाल अब भी वही है कि क्या बड़े नेता इस बार भी बच जाएंगे और केवल प्यादे ही शहीद होंगे। इधर बीजेपी भी अगले 1 साल के लिए अपना एजेंडा तय करने में जुटी है। यानी मध्यप्रदेश में दो अहम बैठकें होने जा रही हैं। एक कांग्रेस की, दूसरी बीजेपी की। लोकसभा चुनाव के बाद हो रही ये बैठकें प्रदेश में सियासत के नए समीकरण तैयार करेंगी या परिवर्तन की आधारशिला रखेंगी।
MP Politics MP में फिलहाल अब कोई चुनाव नहीं हैं। लेकिन पिछले चुनावों के नतीजों पर पोस्टमार्टम ज़रुर हो रहा है। कांग्रेस की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी हार के कारणों को जानने के लिए कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशियों से रिपोर्ट लेने वाली है। दावा तो ये भी किया जा रहा है कि जिम्मेदार बख्शे नहीं जाएंगे।
टिकट तय करने वालों पर एक्शन होगा। क्या पीसीसी चीफ जीतू पटवारी नपेंगे? क्या प्रदेश कांग्रेस प्रभारी जितेंद्र सिंह की एमपी में दिलचस्पी नहीं लेने पर एक्शन होगा? क्या भितरघातियों पर कार्रवाई होगी? क्या आलाकमान को बार बार एमपी से 12 सीटें जीतने का झुनझुना पकड़ाने वाले भी नपेंगे।
कांग्रेस गुनहगारों की तलाश कर रही है तो इधर बीजेपी शानदार जीत के बाद भी रुकी नहीं है। बीजेपी कार्यसमिति की बैठक के साथ साल भर के एजेंडे पर उतरने वाली है। क्योंकि बीजेपी ना सिर्फ बड़े चुनावों के लिए सालभर तैयारी करती है बल्कि सहकारिता और निकाय चुनावों में भी बीजेपी उसी शिद्दत से चुनाव लड़ती है। फिलहाल बीजेपी कार्यसमिति की बैठक में संगठन को मजबूत करने के लिए बड़े कार्यक्रम तय कर रही है। दिल्ली से एमपी तक तमाम पॉवर सेंटर्स के बीच समन्वय बनाने की भी बड़ी प्लानिंग के साथ बीजेपी जुटने वाली है ना सिर्फ पावर सेंटर बल्कि बीजेपी एक बार फिर सदस्यता अभियान की शुरुआत करने वाली है।
मध्यप्रदेश में तगड़ी हार के बाद कांग्रेस फिलहाल लड़खड़ा रही है। हर दिन टूट रही है। नाराज नेता मुंह फुलाकर घर बैठ गए हैं। दूसरी तरफ बीजेपी एमपी से दिल्ली तक सरकार बनाने के बाद भी अपनी जमीन मजबूत कर रही है। खैर,कांग्रेस को खड़ा करना अब दिल्ली आलाकमान के सामने बडी चुनौती है और बीजेपी के लिए भी दिल्ली से भोपाल तक बन चुके तमाम पावर सेंटर्स के बीच तालमेल बनाना भी बड़ी चुनौती दिख रही है।