आदिवासी दिवस…’छुट्टी’ पर संग्राम…आदिवासी दिवस पर छुट्टी को लेकर क्यों मचा है संग्राम?

आदिवासी दिवस पर छुट्टी को लेकर क्यों मचा है संग्राम?! Why is there a ruckus about the holiday on Tribal Day?

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  • Publish Date - August 7, 2021 / 12:30 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:36 PM IST

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Aadivasi Diwas Mp 

भोपाल : मध्यप्रदेश में 2023 में विधानसभा चुनाव होना है, लेकिन कांग्रेस और बीजेपी अभी से सभी वर्गों को साधने में जुट गई है। खासकर कांग्रेस ST, SC वर्ग से जुड़े मुद्दों पर मुखर होकर सत्ता पक्ष को घेर रही है। दरअसल एमपी का मानसून सत्र का आगाज 9 अगस्त से हो रहा है और इसी दिन विश्व आदिवासी दिवस है, जिसे लेकर कांग्रेस के दर्जनों विधायकों ने सीएम शिवराज सिंह चौहान को चिट्ठी लिखकर छुट्टी घोषित करने की मांग की है। इतना ही नहीं विधायक ओमकार सिंह मरकाम भूख हड़ताल पर भी बैठे और कहा कि ये आदिवासी समाज का अपमान है। अब सवाल ये है कि आदिवासी दिवस पर छुट्टी पर क्यों मचा है संग्राम?

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Aadivasi Diwas Mp : मध्यप्रदेश में एक बार फिर आदिवासी समाज पर सियासत तेज़ हो गई है। दरअसल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस है और इसी दिन मध्यप्रदेश की विधानसभा का मॉनसून सत्र शुरु होने जा रहा है। कांग्रेस विधायकों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चिट्ठी लिखकर मांग की है कि 9 अगस्त को सरकार सार्वजनिक अवकाश घोषित करें। हालांकि अब तक सरकार की ओर से इस बारे में कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है, लिहाजा कांग्रेस इस मामले को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की तैयारी मे है। इसके लिए कांग्रेस ने पार्टी के आदिवासी विधायकों को आगे कर दिया है।

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अब कांग्रेस के आदिवासी विधायक जमीन आसमान एक करने की तैयारी मे है। पूर्व जनजातीय विकास मंत्री ओमकार सिंह मरकाम एक दिन की भूख हड़ताल पर बैठे हैं। ओमकार सिंह मरकाम का कहना है कि जिस प्रदेश में 22 फीसदी आबादी आदिवासियों की है उस प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश नहीं है जबकि पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में और झारखंड में 9 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश है। मरकाम का ये भी दावा है कि ये आदिवासी समाज का अपमान है।

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कांग्रेस के आदिवासी विधायकों ने तेवर साफ कर दिए हैं। 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर शुरु हो रहे विधानसभा सत्र में इसकी झलक भी नज़र आ जाएगी, लेकिन कांग्रेस के लिए ये मसला इसलिए भी ज़रुरी है क्योंकि साल 2018 में आदिवासी समाज की ही मेहरबानी से कांग्रेस ने सत्ता का सूखा खत्म किया था। दरअसल मध्यप्रदेश में अनुसूचित जनजाति की आबादी 22 फीसदी है और इसी आबादी की वजह से साल 2018 में कांग्रेस सत्ता में आई थी। 2018 के चुनावों में अनुसूचित जनजाती के लिए आरक्षित 47 सीटों में से कांग्रेस को 35 सीटें मिली थीं। जबकि साल 2013 के चुनावों में कांग्रेस को सिर्फ 15 सीटें मिली थी।

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जाहिर है जब कांग्रेस 15 साल बाद सत्ता में आने को बेताब थी तब आदिवासी तबके ने जोरदार आशीर्वाद देकर उन्हें सत्ता का सिंहासन भी दिला दिया। लेकिन कांग्रेस ज्यादा दिन तक सत्ता को हजम नहीं कर सकी। हालांकि कांग्रेस के आरोपों से विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम इत्तेफाक नहीं रखते। बल्कि ये कहते हैं कि कांग्रेस बताए कि उनकी सरकार ने आदिवासी समाज के लिए क्या काम किया है?

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दरअसल मध्यप्रदेश में सत्ता का दरवाजा प्रदेश के एससी एसटी की 82 आरक्षित सीटों से ही खुलता है। अंक गणित के हिसाब से भी देखें तो साल 2013 में बीजेपी को एससी एसटी की 59 सीटें मिली थी। इन्हीं 59 सीटों की वजह से बीजेपी ने अपना तीसरा टर्म पूरा किया था, लेकिन एससी एसटी ने साल 2018 के चुनावों में बीजेपी के बजाए कांग्रेस पर भरोसा जाहिर किया। नतीजा ये रहा कि इन 54 सीटों और निर्दलियों के सहारे कांग्रेस ने सत्ता का वनवास खत्म कर लिया। हालांकि कांग्रेस का ये सफर मुश्किल रहा और आखिरकार 2020 में कांग्रेस की सरकार भरभरा कर गिर गई। लेकिन कांग्रेस साल 2023 के चुनावों के लिए तैयार है। इस बार भी कांग्रेस को उम्मीद है कि दलित आदिवासियों की लड़ाई में मिलने वाला माइलेज उन्हें सत्ता की चौखट तक जरुर ले जाएगा।

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