नवीन कुमार सिंह, भोपाल: rebellion in elections? मध्यप्रदेश के निकाय चुनाव में टिकटों का ऐलान होते ही बीजेपी-कांग्रेस में बवाल शुरु हो गया है। टिकट कटने के बाद नाराज दावेदारों ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। पार्टी दफ्तर के सामने नारेबाजी और हंगामा हो रहा है तो इस्तीफों का दौर चल पड़ा है। निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी हो गई है, नामांकन तक दाखिल कर दिए हैं। हालांकि बगावत के बवंडर को रोकने पार्टी के दिग्गज नेताओं को कमान सौंपी गई है। लेकिन शहर सरकार की जंग से पहले नेताओं की नाराजगी दूर होगी? बीजेपी और कांग्रेस कैसे बगावत से पार पाएंगी?
rebellion in elections? देवास स्थित बीजेपी दफ्तर में बीजेपी नेता भोजराज सिंह जादौन ने खुद पर केरोसिन डालकर हंगामा किया। भोजराज पार्षद पद के लिए दावेदारी कर रहे थे। टिकट कटने का विरोध करने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोलने वालों में भोजराज अकेले नहीं है। बीजेपी और कांग्रेस से नाराज दावेदारों ने बवाल कर रखा है।
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बगावत की घटना भोपाल, ग्वालियर , जबलपुर समेत कई इलाकों से आ रही हैं। टिकट नहीं मिलने पर दावेदारों ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, दनादन इस्तीफे गिर रहे हैं। मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के बंगलों पर नारेबाजी हो रही है। दोनों ही दलों ने आखिरी वक्त पर टिकट डिक्लेयर किए हैं ताकि दावेदारों की बगावत का नुकसान कम से कम हो सके। हालांकि दावेदारों ने हेलिकॉप्टर लैंडिंग की आशंका जाहिर करते हुए पहले ही नामांकन दाखिल कर दिए थे। लेकिन अब बीजेपी कांग्रेस की मुसीबत बढ़ चुकी है।
दावेदारों की बगावत से दोनों दल सहम चुके हैं। बीजेपी के सामने अपने 16 नगर निगम बचाए रखने की चुनौती है, तो कांग्रेस इस दफा खाता खोलने की उम्मीद से है। दरअसल मध्यप्रदेश में साल 2015 में नगरीय निकाय चुनाव हुए थे तब बीजेपी ने मध्यप्रदेश के सभी 16 नगर निगम जीते थे। बीजेपी के 511 पार्षद जीते थे और कांग्रेस निर्दलीय मिलाकर 363 पार्षदों की जीत हुई थी। प्रदेश की 98 नगर पालिकाओं में 53 अध्यक्ष बीजेपी के बने थे, कांग्रेस के 39 नगर पालिकाओं में 1362 पार्षद बीजेपी के जीते, कांग्रेस-निर्दलीय मिलकर 1332 पार्षदों की जीत हुई थी अब कांग्रेस विधानसभा चुनाव के पहले शहर सरकार बनाकर 2023 के विधानसभा चुनावों की जमीन मजबूत करने की कोशिश मे है। जबकि बीजेपी अपने चेहरे को बेनूर होने से रोकने की तैयारी कर रही है।
कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही अपने दिग्गज और प्रभावशाली नेताओं को नाराज़ दावेदारों को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी है। लेकिन दावेदारों का गुस्सा देखकर लगता नहीं कि वो इतनी जल्दी शांत होंगे। ऐसे में सवाल है कि अगर बगावत का ये ड्रामा ऐसे ही चलता रहा तो नुकसान किसे ज्यादा होगा?