Demand of maids: शिखिल ब्यौहार. भोपाल। यदि आपके घरों में घरेलू कामकाज के लिए महिलाएं काम करती हैं तो यह खबर आपके लिए है। क्योंकि मध्यप्रदेश में अब होम वर्कर्स मतलब बाईयों का भी यूनियन बनकर तैयार हो गया है। खास बात तो यह है कि अब इन बाईयों ने हेल्थ इंशोरेंस, विकली ऑफ समेत अन्य मांग शुरू कर दी हैं। वैसे तो फिल्मी छोटे-बड़े पर्दों पर तो कभी विज्ञापनों में घरों में कामकाज करने वाली बाईयों की मांग को लेकर होने वाली कॉमेडी पर ठहाके लगाए होंगे। लेकिन एमपी में ऐसी ही मांग जोर पकड़ने लगी है। सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर घरेलू कामकाजी महिलाओं ने मध्यप्रदेश घरेलू कामकाजी ट्रेड यूनियन नाम का संगठन भी खड़ा कर लिया है। इनकी मांग से हो सकता है कि आप टेंशन का शिकार हो जाएं पर मांगों को लेकर मंत्रियों से मंत्रालय तक बैठे वरिष्ठों को चिठ्ठियां भेजी जा रहीं हैं। इन मांगों में झाड़ू-कटका-पोछा से लेकर बर्तनों की सफाई और खाना बनाने के दाम तय करने की मांग सरकार से की जा रही है। सप्ताह में बिना वेतन काटे वीकली ऑफ और मेडिकल सिक्योरिटी की मांग भी शामिल है।
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Demand of maids: घरेलू महिलाओं के साथ जुड़े संगठनों ने बताया कि चार राज्यों में कामवाली बाईयों की स्थिति को लेकर इन मांगों पर विचार मंथन शुरू हो गया है। घरों में काम करने वाली महिलाएं भी अन्य मजदूरों की तरह ही हैं। जो परिस्थिति वश घरों में काम करती हैं। लेकिन कभी शासन-प्रशासन ने इन पर ध्यान नहीं दिया। लिहाजा अपनी मांगों को लेकर अब आंदोलन की राह पकड़ने के लिए मजबूर हैं। दावा किया कि मध्यप्रदेश में लाखों की संख्या में कामकाजी महिलाएं पूंजीवादी विचारधारा का शिकार हैं। राजधानी भोपाल में ही इनकी संख्या तीन लाख के पार है। प्रदेश में पहली बार ऐसा हो रहा है जब घरेलू कामकाजी महिलाओं ने वर्क मैन्यू पर सरकारी ठप्पा के साथ आंदोलन की राह पकड़ी हो। श्रम कानून के प्रावधानों और गाइडलाइन में शामिल करने की बात की जा रही हो, नए दौर की नई मांगों का असर आखिर सरकार और खासकर आम लोगो पर क्या होगा। ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
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Demand of maids: होम वर्कर्स अपनी प्रमुख मांगें को लेकर अब आंदोलन की राह पकड़ ली है। अपने लिए होम वर्कर्स ने 6 प्रमुख मांग सामने रखी है जिसमें सबसे पहले इनका कहना है कि बिना पैसा काटे उन्हे साप्ताहिक अवकाश मतलब हफ्ते में एक दिन की छुट्टी दी जाए। मेडिकल की सुविधा के साथ हेल्थ इंशोरेंस भी करने की मांग की है। सभी घरेलू काम के दरों का सरकार निर्धारण करे और कलेक्टर इन्हें गाइडलाइन में शामिल करे। प्रति व्यक्ति खाना बनाने के लिए एक हजार रुपए तो बच्चे की 8 घंटे तक देखभाल के लिए आठ हजार रुपए महीने तय किए जाएं। मकान के आकार के हिसाब से झाड़ू-पौंछे की दरें तय हों, 600 वर्गफीट के मकान की सफाई के लिए 1200 रुपए प्रति माह की दर तय करने की मांग। घरेलू कामकाजी महिलाओं को संगठित क्षेत्र के साथ सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008 में शामिल करने की ये कुछ प्रमुख मांगे है।
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