Vindhya politics in Madhya Pradesh assembly elections 2023 : भोपाल। साल 2023 में देश के 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव का आगाज होने वाला है। गुजरात में मिली ऐतिहासिक जीत के साथ भाजपा पूरी तैयारी में है कि इन 9 राज्यों में अपना दमखम दिखा सके। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले इन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव भाजपा या कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। इन चुनाव के नतीजे ही आने वाले 2024 में लोकसभा चुनाव की जीत के रास्ते खोलेगी।
Vindhya politics in Madhya Pradesh assembly elections 2023 : इस साल मध्यप्रदेश में भी विस चुनाव होने वाला है। जिसको लेकर प्रदेश में भी चुनावी बिगुल बज चुका है। भाजपा और कांग्रेस ने अपने स्तर से तैयारियां तेज कर दी है। एक ओर जहां भाजपा सत्ता बरकरार तो दूसरी ओर कांग्रेस सत्ता वापसी करना चाहेगी। अभी तक के चुनावों में प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस की निगाहें बुंदेलखंड और विंध्य पर टिकी रहती है। एक ओर जहां बुंदेलखंड में भाजपा ने अपना वर्चस्व बरकरार रखा है तो वहीं विंध्य में भाजपा की अच्छी पकड़ मानी जाती है। विंध्य प्रदेश का पांचवा सबसे बड़ा क्षेत्र है।
Vindhya politics in Madhya Pradesh assembly elections 2023 : अगर राजनीतिक दृष्टि से एक नजर इस क्षेत्र में मारी जाए तो प्रदेश की 31 विधानसभा सीटें और 4 लोकसभा सीटें इस क्षेत्र में आती हैं। बता दें कि मध्य प्रदेश बनने के बाद से ये जोन राजनीति का केंद्र रहा है। पिछले कुछ विधानसभा चुनावों की बात करें तो इसमें बीजेपी ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। तो वहीं संभाग में रीवा सबसे केंद्र का विषय बना रहा है। रीवा शहर की बात करें तो पहले इस जिले में ज्यादा विकास नहीं हुआ था। रीवा से थोड़ी दूर चलने पर उत्तरप्रदेश की सीमा प्रारंभ हो जाती है। वहीं शहरी मतदाताओं की बात करें तो सामान्य और पिछड़ा वर्ग इसमें ज्यादा महत्व रखते हैं।
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Vindhya politics in Madhya Pradesh assembly elections 2023 : कई सालों से विंध्य भाजपा का गढ़ माना जा रहा है। अगर पिछले विस चुनाव 2018 की बात करें तो यहां पर कांग्रेस के पास बहुमत और सत्ता आने के बाद भी विंध्य में ज्यादा सीटों पर कब्जा नहीं कर पाई। इसलिए इस साल के चुनाव में कांग्रेस विंध्य प्रांत में ज्यादा फोकस कर रही है। लेकिन कांग्रेस के लिए यह इतना आसान नहीं है। अगर कांग्रेस को इस साल चुनाव में फतह हासिल करनी है तो इस बार सक्रिय उम्मीदवार और नए मास्टर प्लान के साथ क्षेत्र में फोकस करना होगा।
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अन्य क्षेत्रों के जैसा इस विंध्य में भी जातिगत समीकरण का दबदबा है। शहरी से लेकर ग्रामीण तक ब्राह्मण, ठाकुर और पिछड़ा वर्ग से कुर्मी अधिकांश मतदाता है। जिन्हे लुभाने में कांग्रेस अभी तक नाकाम रही है। राजनीतिक पहलुओं को देखा जाए तो कांग्रेस के लिए महाभारत के जैसे अभिमन्यु की जरूरत होगी जो भाजपा के इस अभेद्य चक्रव्यहू को भेदकर कांग्रेस को जीत दिला सके। अगर पिछले पांच चुनावों पर नजर डालें तो 2003, 2008, 2013 और 2018 के चुनावों में बीजेपी को यहां कांग्रेस से ज्यादा सीटें मिली थीं। 2018 में भी जब कांग्रेस पार्टी कई सालों के बाद राज्य में सत्ता में लौटी तो उसे विंध्य में केवल 6 सीटों से ही संतोष करना पड़ा।
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भाजपा और कांग्रेस के अलावा इस क्षेत्र में बसपा, सपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का भी दबदबा रहा है। बसपा और सपा की असली वजह तो यह है कि इस क्षेत्र की सीमा उत्तरप्रदश से मिलती है जिससे सपा और बसपा ने अपना उम्मीदवार यहां से उतारकर जीत हासिल की है। 2018 के विधानसभा की बात करें तो इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं। क्षेत्र से चुनाव जीतकर कांग्रेस के 6 विधायक विधानसभा पहुंचे। 2018 के चुनाव में बसपा 2 सीटों पर नंबर 2 की पोजीशन पर थी। वहीं 1-1 सीटों पर समाजवादी पार्टी और गोडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर आए थे। यानी बीजेपी और कांग्रेस के अलावा दूसरे दलों को भी लोग यहां वोट देते हैं।