mp assembly election result 2023: भोपाल। मध्य प्रदेश का ये विधानसभा चुनाव कई दिग्गज नेताओं का राजनीतिक भविष्य तय करने वाले हैं। जिनमें सबसे बड़ा नाम केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का है। या यूं कहे कि सिंधिया का इस विधानसभा चुनाव में इम्तिहान है… जिस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं.. अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया इस इम्तिहान में पास हो जाते हैं, तो मध्य प्रदेश की राजनीति में एक नया चैप्टर लिखेंगे… तो वहीं,ग्वालियर चंबल की 34 विधानसभा सीट भी उनके लिए बेहद खास है।
वीओ1- मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव… ज्योतिरादित्य सिंधिया का इम्तिहान…. इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है। कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आचार संहिता लगने के बाद… अकेले ग्वालियर चंबल संभाग में 85 से ज्यादा जनसभाएं कीं.. इसकी वजह साफ है, क्योंकि ग्वालियर-चंबल की 34 सीटें उनके राजनीतिक भविष्य को तय करने वाली हैं।
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पहली बार ऐसा हुआ है… जब ग्वालियर-चंबल संभाग की तस्वीर इस विधानसभा चुनाव में बदली-बदली है। जिस अंचल में पहले राजा यानी दिग्विजय सिंह और महाराज यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस की ताकत थे। इन्हीं चेहरों पर इस अंचल में कांग्रेस भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ती थी, वहां इस बार राजनीतिक समीकरण बदला हुआ था। महाराज भाजपा के लिए वोट मांग रहे थे। 2013 और 2018 की स्थिति को देखें तो 2013 में भाजपा ने मुरैना की चार सीटों पर कब्जा किया था.. जो 2018 में पार्टी से छिन गईं.. जिले की सभी 6 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं, जबकि भिंड जिले की 5 में से 3 सीटें कांग्रेस ने जीती।
वहीं, ग्वालियर जिले की 6 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 5 और बीजेपी को 1 सीट मिली थीं.. शिवपुरी की 5 में से 3 सीटें कांग्रेस को मिली थीं.. गुना की 4 में से 3 सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी जीते। अशोकनगर की तीनों सीटें कांग्रेस के खाते में गईं। श्योपुर की दोनों सीटों से एक कांग्रेस ने जीती.. दतिया की तीनों सीटों में से भाजपा सिर्फ एक सीट बचा पाई थी।
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वहीं, साल 2018 के चुनाव में आरक्षण के कारण सुलगे आंदोलन से ग्वालियर-चंबल संभाग में भाजपा को 13 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था… पिछले चुनाव में भाजपा के सिर्फ 7 विधायक ही जीत पाए थे.. वहीं, सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस ने अपने विधायकों की संख्या 12 से बढ़ाकर 26 कर ली थी। हालांकि बीजेपी को इस बार सिंधिया से काफी उम्मीदें हैं.. तो वहीं कांग्रेस कह रही है… वो अपने इम्तिहान में फेल होंगे।
बरसों-बरस चुनाव के दौरान अपने खास समर्थकों को टिकट दिलवाना और उनको चुनाव में जिताना ही सिंधिया घराने के महाराजा का काम रहा है.. कांग्रेस से बीजेपी में आने के बाद के चुनाव में सिंधिया ने अपने 10 से 15 समर्थकों को टिकट तो दिलवा दिया… लेकिन उनके सामने 2018 के पुराने प्रदर्शन को दोहराने की बड़ी चुनौती है।