Cannon In Ramadan: यहां ढोल पीटक सहरी और इफ्तार के लिए मुसलमानों को जगाते हैं हिंदू, सालों से चली आ रही है तोप दागने की भी परंपरा

Cannon In Ramadan: यहां ढोल पीटक सहरी और इफ्तार के लिए मुसलमानों को जगाते हैं हिंदू, सालों से चली आ रही है तोप दागने की भी परंपरा

  • Reported By: Santosh Malviya

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  • Publish Date - March 22, 2025 / 06:29 PM IST,
    Updated On - March 22, 2025 / 06:36 PM IST
Cannon In Ramadan/ Image Credit: IBC24

Cannon In Ramadan/ Image Credit: IBC24

HIGHLIGHTS
  • हिंदू परिवार के सदस्य भी ढोल पीटकर रोजेदारों को जगाते हैं।
  • इफ्तारी और सहरी की सूचना देने के लिए किले की पहाड़ी से 2 वक्त तोप चलाई जाती है।
  • यह परंपरा नवाबी काल से चली आ रही है।
  • जिला प्रशासन एक माह के लिए लाइसेंस जारी करता है।

रायसेन। Cannon In Ramadan:  रायसेन के ऐतिहासिक किले से आज भी रमजान में रोज़ादारों को तोप की गूंज से मिलती है। सहरी और इफ्तार की सूचना,रायसेन किले पर वर्षो से रोजेदारों के लिए निभाई जा रही अनूठी परंपरा नवाबी काल में शुरू हुई यह परंपरा आज भी लगातार जारी है। जिला प्रसाशन द्वारा दी जाती है रमजान माह के लिए तोप चलाने की अनुमति।

बता दें कि, रमजान का पवित्र माह शुरू हुए 21 दिन हो गए अल्लाह की इबादत में रोजे रखे जा रहे हैं। इस पूरे माह रोजेदारों के लिए सहरी और इफ्तार का समय सबसे अहम होता है। आजकल जहां आधुनिक संसाधनों से सहरी और इफ्तारी की सूचना देने का चलन है। वहीं,मध्यप्रदेश का रायसेन जिला ऐसा है जहां आज भी परंपरागत और अनूठे तरीके से सहरी और इफ्तारी की सूचना पहुंचाई जाती है। जिसके तहत रायसेन के किले पर सहरी से पहले और शाम को इफ्तारी के वक्त तोप दागने की परंपरा है। जो आज से नहीं कई वर्षों से चली आ रही है। यही नहीं यहां हिंदू परिवार के सदस्य भी ढोल पीटकर रोजेदारों को जगाते हैं।

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2 वक्त चलाई जाती है तोप

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 47 km दूर रायसेन जिला बसा हुआ है। यहां रमजान माह में सुबह लगभग बजे और शाम के वक्त अगर कोई बाहरी शख्स पहुंच जाए तो वह यहां गूंजने वाली तोप की आवाज से न केवल चौंक जाएगा। बल्कि किसी आशंका का अनुमान भी लगा बैठेगा। लेकिन,हकीकत इससे कहीं अलग है। दरअसल,यहां रमजान माह के पवित्र दिनों में इफ्तारी और सहरी की सूचना देने के लिए किले की पहाड़ी से 2 वक्त तोप चलाई जाती है। जिसकी आवाज सुनकर शहर सहित आसपास के लगभग 12 गांवों के रोजेदार रोजा खोलते हैं और इस तोप की आवाज भी लगभग 15 किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है। यह परंपरा नवाबी काल से चली आ रही है जब सेहरी और इफ्तारी की सूचना देने के लिए कोई साधन नहीं हुआ करते थे।

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जिला प्रशासन जारी करता है लाइसेंस

करीब 200 साल पहले रायसेन किले पर राजा और नवाबों का शासन हुआ करता था। उन दिनों से ही लोगों को सूचित करने के लिए तोप के गोले दागे जाने की शुरुआत हुई थी। इसके बाद साल 1936 में भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह ने बड़ी तोप की जगह एक छोटी तोप चलाने के लिए दी।इसके पीछे वजह यह थी कि, बड़ी तोप की गूंज से किले को नुकसान पहुंच रहा था। रायसेन के किले से इस तोप को चलाने की प्रक्रिया भी कम रोचक नहीं है। दरअसल, इसके लिए जिला प्रशासन बकायदा एक माह के लिए लाइसेंस जारी करता है। तोप चलाने के लिए आधे घंटे की तैयारी करनी पड़ती है। इसके बाद तोप दागी जाती है।

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मस्जिद की मीनार से दी जाती है सिग्नल

Cannon In Ramadan: जब रमजान माह समाप्त हो जाता है तब तोप की साफ-सफाई कर सरकारी गोदाम में जमा कर दी जाती है। पूरे महीने तोप दागने में करीब 70 हजार रुपए खर्च हो जाते हैं। तोप चलाने से पहले दोनों टाइम टांके वाली मरकाज वाली मस्जिद से बल्ब जलाकर सिग्नल मिलता है। सिग्नल के रूप में मस्जिद की मीनार पर लाल या हरा रंग का बल्ब जलाया जाता है। उसके बाद किले की पहाड़ी से तोप चलाई जाती है। ऐसा बताया जाता है राजस्थान में तोप चलाने की परंपरा है। उसके बाद देश में मप्र का रायसेन ऐसा दूसरा शहर है जहां पर तोप चलाकर रमजान माह में सहरी और इफ्तारी की सूचना दी जाती है।

 

रायसेन के किले पर तोप क्यों चलाई जाती है?

रायसेन किले पर तोप सहरी और इफ्तार की सूचना देने के लिए चलाई जाती है। यह परंपरा नवाबी काल से चली आ रही है और आज भी लगातार जारी है।

रायसेन में तोप चलाने की परंपरा कब से शुरू हुई थी?

यह परंपरा करीब 200 साल पहले नवाबी काल में शुरू हुई थी जब सेहरी और इफ्तारी की सूचना देने के लिए तोप चलाने का चलन था।

क्या रायसेन में रमजान के दौरान ढोल पीटकर हिंदू मुसलमानों को जगाते हैं?

हां, रायसेन में हिंदू परिवारों के सदस्य रमजान के दौरान ढोल पीटकर मुसलमानों को सहरी के लिए जगाते हैं। यह परंपरा भी बहुत पुरानी है।

किले से तोप चलाने के लिए क्या विशेष अनुमति चाहिए?

किले से तोप चलाने के लिए जिला प्रशासन से एक माह के लिए लाइसेंस जारी किया जाता है। इसके बाद तोप चलाने की प्रक्रिया शुरू होती है।