भोपाल: Promotion of government employees मध्य प्रदेश में 6 साल से अधिकारियों-कर्मचारियों की पदोन्नति बंद है। पदोन्नति नियम 2002 के निरस्त होने के बाद से सरकार अभी तक नया नियम नहीं बना पाई है। इसके लिए गठित मंत्रिपरिषद समिति की पांच बैठकें हो चुकी हैं। लेकिन अभी तक प्रमोशन का कोई फॉर्मूला तय नहीं हो पाया है।
Promotion of government employees मध्य प्रदेश में प्रमोशन को लेकर कर्मचारियों का इंतजार बढ़ता जा रहा है। ये इंतजार कब खत्म होगा कहना भी मुश्किल है। जिम्मेदार सिर्फ बैठकों में व्यस्त हैं और भरोसा दिलाया जा रहा है कि सब ठीक होगा। लेकिन कर्मचारियों का सब्र अब टूटने लगा है क्योंकि प्रमोशन का इंतजार करते-करते 50 हजार से ज्यादा कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं। एमपी में पिछले 6 साल अफसरों और कर्मचारियों का प्रमोशन रुका है। प्रमोशन कब शुरू होंगे, इसे लेकर स्थिति साफ नहीं है। वहीं, बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन कर अपील वापस ले ली है और प्रमोशन का रास्ता निकाल लिया है। जानकारों का कहना है कि मध्य प्रदेश सरकार भी ये रास्ता अपना सकती है।
मध्य प्रदेश में 2016 से सरकारी विभागों में प्रमोशन नहीं हो रहा है। इसकी वजह हाईकोर्ट में 2002 में बनाए गए प्रमोशन नियम को रद्द किया जाना है। तर्क दिया गया है कि सेवा में अवसर का लाभ सिर्फ एक बार दिया जाना चाहिए। नौकरी में आते समय आरक्षण का लाभ मिल जाता है फिर पदोन्नति में भी आरक्षण का लाभ मिल रहा था। इसे लेकर सामान्य वर्ग के कर्मचारियों को आपत्ति थी। इसलिए हाईकोर्ट ने पदोन्नति का नियम ही खारिज कर दिया। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि आरक्षण रोस्टर के हिसाब से जो पदोन्नति हुई उन्हें रिवर्ट किया जाए। जबसे इस फैसले को प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी तभी से मामला उलझा हुआ है।
अब इस मामले में 11 मई को 132 याचिकाओं पर सुनवाई होनी है। प्रमोशन में आरक्षण के लिए गठित मंत्रिपरिषद को कोई ऐसा फार्मूला नहीं मिल पा रहा है, जिससे सभी वर्गों को संतुष्ट किया जा सके। इसे लेकर विपक्ष सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहा है।
सरकारी आंकलन के तहत अगर कर्मचारियों को प्रमोशन मिलता है तो खजाने पर सालाना ढाई हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार आएगा। उधर कर्मचारियों के प्रमोशन तो नहीं हो रहे हैं लेकिन IAS, IPS और IFS समेत राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों के प्रमोशन हो रहे हैं। कमलनाथ सरकार में ये मामला विधानसभा में भी उठा था। तत्कालीन स्पीकर ने निर्देश दिए थे कि जब तक प्रमोशन का फैसला नहीं हो जाता तब तक अफसरों को भी प्रमोशन ना दिया जाए। लेकिन सत्ता बदलने के साथ ही ये निर्देश और कर्मचारियों की किस्मत भी फाइलों में कैद होकर रह गई।