नरसिंहपुर। क्या सिस्टम इतना भी बेरहम हो सकता है की उसे मासूम बच्चों की रोती हुई सिसकियां और बुजुर्गो की वेदना की भी परवाह न रहे। ऐसा ही मामला नरसिंहपुर से सामने आया है जहां सिस्टम के बेरहम सितम ने एक साथ कई परिवारों को उजाड़ कर रख दिया और अब यह परिवार विस्थापन की त्रासदी झेलने को मजबूर है।
नरसिंहपुर के सांकल रोड स्थित भगत सिंह वार्ड की यह तस्वीर है बेहद विचलित करने वाली है, जहां प्रशासन के बुलडोजर रूपी पंजे में देखते ही देखते कई परिवारों को बेघर कर सड़क पर रहने को मजबूर कर दिया है। अब इन परिवारों के पास सर छुपाने की कोई जगह है और ना ही रोजगार का कोई साधन। अतिक्रमण के नाम पर प्रशासन में अमानवीयता का ऐसा खेल खेला की देखते ही देखते कई परिवार एक साथ उजड़ गए। पीड़ितों की माने तो भले ही वह पिछले दो तीन दशकों से यहां अपना आशियाना बनाकर और गुमटियों में दुकान लगाकर अपना और अपने परिवार का गुजर बसर करते आ रहे थे। इस जमीन का प्रशासन द्वारा उन्हें पट्टा भी दिया गया और पीएम आवास योजना का लाभ भी और फिर अचानक से प्रशासन में बिना कोई नोटिस दिए और बिना विस्थापित किया जेसीबी से दलबल के साथ आकर उनके आशियानों को नहीं बल्कि उनके अरमानों को भी उजाड़ कर रख दिया।
अमीना बी हो या गणेशी ठाकुर जिन्होंने अपनी उम्र में अपनी तीसरी पीढ़ी को इन्हीं मकान के आंगन में खेलते देखा, लेकिन अब प्रशासन के तानाशाह रवैया के आगे खुद को वह भी बेबस पा रही है। उनका कहना है कि प्रशासन में उन्हें भरोसा दिलाया था कि पहले उन्हें विस्थापित किया जाएगा और फिर उनके आशियाने को तोड़ा जाएगा, लेकिन प्रशासन में बिना कोई नोटिस और बिना कोई पूर्व सूचना के एकाएक आकर उनके घरों को तोड़कर रख दिया। भले प्रशासन के अपने नियमों के अलग ही मायने हो, लेकिन स्वाभिमान से जीने का अधिकार देश के हर एक नागरिक को है, लेकिन इन अतिक्रमण की जद में रहने वाले वाशिंदो को प्रशासन ने बलपूर्वक कुछ इस तरह रौंदा की उन्हें अपनी आह निकलने का मौका भी नहीं दिया।
पीड़ितों का कहना है जिस जगह पर वह रह रहे हैं उसमें आधा हिस्सा शासन का और पीछे की तरफ एक रिश्तेदार व्यक्ति का खेत है और पैसे की दम पर रसूखदार को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से ये सारा खेल खेला जा रहा है। सरकारी दफ्तर भले ही शाम को 5:00 बजे बंद हो जाते हैं, लेकिन रात्रि को 10:00 बजे तक जिस तरीके से प्रशासन जेसीबी लगाकर तोड़फोड़ को अंजाम दे रहा है कि घर गृहस्ती का सारा सामान भी जेसीबी के पंजे के नीचे दबकर रह गया और उन्हें सड़क पर ही अब जीवन गुजारने पर मजबूर कर दिया। उनका कहना भी जायज है यदि विकास की कीमत किसी परिवार को उजाड़ कर चुकानी पड़े तो ऐसा विकास कहीं ना कहीं सोचने पर मजबूर करता है। क्योंकि नियम अनुसार वर्षों से काबिज रहवासियों को विस्थापन की भी जवाबदेही सुनिश्चित करना भी सिस्टम का ही दायित्व है, लेकिन पुलिस के बल पर जब सिस्टम अपना कुचक्र चलता है तो ऐसी ही तस्वीर सामने आती है। IBC24 से पंकज गुप्ता की रिपोर्ट
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