नई दिल्ली। Kuno National Park : 7 दशक बाद भारत में चीतों की वापसी हो रही है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में 8 अफ्रीकन चीतों को शिफ्ट किया गया। देश में हर जगह इसी की चर्चा हो रही है। नामीबिया से भारत लाए गए 8 चीतों को मध्यप्रदेश के श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया। एक तरफ जहां इसे लेकर हर जगह उत्सुकता बनी हुई है, वहीं दूसरी तरफ इसे लेकर अब एक विवाद खड़ा हो गया है।
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दरअसल, आज नामीबिया से भारत लाए गए चीतों को मध्यप्रदेश के श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ दिया गया, लेकिन इसे लेकर एक विवाद शुरू हो गया। ये विवाद श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क के जमीन को लेकर शुरू हुआ है। दरअसल, अभ्यारण्य के लिए दी गई जमीन को लेकर पालपुर राजघराने के वंशजों ने कोर्ट में याचिका लगाई है जिसकी 19 सितंबर को सुनवाई होगी।
मिली जानकारी के अनुसार राजघराने के वंशजों की ओर से दी गई याचिका में कहा गया है कि यह जमीन शेरों को रखने के लिए दी गई थी, लेकिन अब इस सेंचुरी में चीते लाए जा रहे हैं। इसे लेकर पालपुर राजघराने के वंशज ने वीडियो जारी कर अपना दर्द सुनाते हुए कहा, ”या तो हमें अपनी जमीन वापस दी जाए या सेंचुरी (अभयारण्य) में शेर लाए जाएं।”
कूनो नेशनल पार्क को लेकर राज परिवार की तरफ से दायर याचिका में पार्क के अंदर प्रशासन द्वारा अधिग्रहित राज परिवार के किले और जमीन पर कब्जा वापस करने की मांग की गई है। इस दायर याचिका में पालपुर राजघराने की तरफ से दावा किया गया है कि उन्होंने अपना किला और जमीन शेरों के लिए दी थी, न कि चीतों के लिए। शेर आते तो जंगल बचता, लेकिन अब चीतों के लिए मैदान बनाए जा रहे हैं और पेड़ काटे जा रहे हैं। हमने शेरों के लिए ये जगह दी थी। अगर शेर नहीं ला पाए तो हमारी जमीन वापस कर दीजिए। राज परिवार की तरफ से कहा गया है कि जब कूनो को गिर शेरों को लाने के लिए अभयारण्य घोषित किया गया तो उन्हें अपना किला और 260 बीघा भूमि खाली करनी पड़ी। पालपुर राजघराने के वंशजों ने अपनी पुश्तैनी संपत्ति वापस पाने के लिए राज्य सरकार के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
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दरसअल, कूनो नेशनल पार्क की जमीन को लेकर राजपरिवार ने आपत्ति जताई है। उन्होने कहा है कि शेर (सिंह) परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना 1981 में जारी हुई थी। कूनो पालपुर सेंचुरी में 220 बीघा सिंचित-उपजाऊ जमीन अधिग्रहित की गई थी, जिसके बदले में 27 बीघा असिंचित, ऊबड़-खाबड़, पथरीली जमीन दी है। इसके साथ ही उनका कहना है कि 220 बीघा जमीन के बीच पालपुर रियासत का ऐतिहासिक किला, बावड़ी, मंदिर आदि सम्पत्ति है, जिसका अधिग्रहण में कोई जिक्र नहीं, ना ही कोई मुआवजा मिला, फिर भी सरकार इन सम्पत्तियों का उपयोग कर रही है। इसके अलावा पालपुर राजघराने के वंशज गोपाल देव सिंह का कहना है कि पालपुर के राजा स्वर्गीय जगमोहन सिंह जो तीन बार विधायक भी रहे, उन्होंने इस सेंचुरी की खुद नींव इसलिए रखी थी कि कम से कम जानवर और जंगल सुरक्षित रह सकें, लेकिन समय के साथ हमें बेदखल कर दिया गया।