Jhabua Chhath Pooja: झाबुआ। आस्था का महापर्व छठी भगवान सूर्य की उपासना का महापर्व है छठी। छठी पर्व भारतीय संस्कृति को दर्शाता है। एक ऐसा पर्व जिसमें अलग-अलग समय सूर्य पूजे जाते है। उदय होने और अस्त होने पर सूर्य देवता की पूजन की जाती है। इस कड़ी में आज झाबुआ के बहादुर सागर तालाब पर छठ महापर्व का परायण हुआ। यहां तालाब तट पर भक्तों ने सूर्य को अर्घ्य दिया। लोक आस्था के महापर्व ‘छठी‘ का हिंदू धर्म में अपना एक अलग महत्व है। यह एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें ना केवल उदयाचल सूर्य की पूजा की जाती है बल्कि अस्त होते हुये सूर्य को भी पूजा जाता है।
Jhabua Chhath Pooja: महापर्व के दौरान हिंदू धर्मावलंबी भगवान सूर्य देव को जल अर्पित कर उनकी आराधना करते हैं। बिहार में इस पर्व का खास महत्व है। मान्यता है कि छठी देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है। चार दिवसीय यह पर्व शुक्रवार को साफ सफाई और ध्यान से शुरू होकर शनिवार को पूर्ण उपवास करते है इस दिन पानी तक नहीं पीते। रात को अपनी इच्छा अनुसार मीठा खाकर पानी पीते हैं। तीसरे दिन रविवार को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया गया। इसके बाद सोमवार की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ महापर्व का समापन हुआ। श्रद्धालु सुबह 4 बजे से ही नगर के बहादुर सागर तालाब परिसर के तट पर पहुंचने लगे थे।
Jhabua Chhath Pooja: पर्व को लेकर श्रद्धालुओं में भक्ति व उत्साह चरम पर दिखाई दे रहा था। यह पर्व बिहार ही नहीं, देश-विदेश में उन सभी जगहों पर भी मनाया गया, जहां बिहार की संस्कृति पहुंची है। छठी पर्व अकेला ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते सूर्य की पूजा की जाती है। यह पर्व कहता है कि फिर सुबह होगी और नया दिन आएगा। अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद अगली सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। जिसमें व्रतधारी पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्द्य्य देते है, प्रथम अर्घ्य और द्वितीय अर्घ्य के बीच का समय तप का होता है। यह समय प्रकृति को प्रसन्न करने का तथा उससे वर प्राप्त करने का माना जाता है। पौराणिक मान्यतानुसार छटपूजा आदिकाल से चली आ रही है और सर्वप्रथम सूर्यपुत्र कर्ण ने ही सूर्यदेव की पूजा कर छठी पर्व का आरंभ किया था ऐसा कहा जाता है।
Jhabua Chhath Pooja: छठी पूजा को लेकर अनेक कथाएं विद्यमान है। लेकिन लोक परंपरा के अनुसार कहा जाता है कि सूर्यदेव और छठी मैया का भाई-बहन का संबंध है और इसी के चलते सूर्य की आराधना की जाती है। पवित्रता के साथ व्रत करने वालों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। व्रत के विषय में जानकारी देते हुये व्रतधारी ब्रजकिशोर सिकरवार और अशोक सिन्हा ने बताया कि यह छठी पर्व की पूजा, सूर्य भगवान की पूजा की जाती है और यह 4 दिन का व्रत होता है। जो कि शुक्रवार से प्रारंभ हुआ जिसके तहत शनिवार को निर्जला उपवास था और घर का शुद्धिकरण करते हुये भगवान सूर्य का पूजन किया गया है। जिसमें उनके द्वारा घर, परिवार, समाज, देश की सुख समृद्धि के लिये प्रार्थना की जाती हैं। वहीं रविवार की शाम को बहादुर सागर तालाब के तट पर डूबते सूर्य को अर्ध्य देकर पूजन किया गया। जबकि आज सोमवार को प्रातः उगते हुये सूर्य का पूजन कर व्रत का पारण किया गया।
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