इंदौर, 24 मार्च (भाषा) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने सोमवार को अपने एक फैसले के जरिये स्पष्ट किया कि अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने के बाद भी जैन समुदाय हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के दायरे में बरकरार है।
इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने कड़ी टिप्पणियों के साथ इंदौर के कुटुम्ब न्यायालय के एक अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश के आठ फरवरी के बहुचर्चित फैसले को रद्द कर दिया। इस फैसले में अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश ने जैन समुदाय के 37 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर और उसकी 35 वर्षीय पत्नी के आपसी सहमति से तलाक लेने की अर्जी को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा था कि जैन समुदाय को 2014 में अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने के बाद इस धर्म के किसी अनुयायी को ‘‘उसके धर्म से विपरीत मान्यताओं वाले किसी धर्म’’ से संबंधित व्यक्तिगत कानून का लाभ दिया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने कुटुम्ब न्यायालय के इस फैसले को उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ में अपील दायर करके चुनौती दी थी। अपील पर सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों ने उच्च न्यायालय में दलील दी कि उन्होंने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था।
उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति संजीव एस. कलगांवकर ने सॉफ्टवेयर इंजीनियर की अपील मंजूर कर ली।
उच्च न्यायालय ने कुटुम्ब न्यायालय के अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश के इस निष्कर्ष को ‘‘गंभीर रूप से अवैध’’ और ‘‘स्पष्ट तौर पर अनुचित’’ करार दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधान जैन समुदाय के लोगों पर लागू नहीं होते हैं।
पीठ ने अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश को निर्देश भी दिया कि वह जैन समुदाय के दम्पति की तलाक की याचिका पर कानून के अनुसार कार्यवाही करें।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र सरकार द्वारा जैन समुदाय को अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता देने के लिए 11 साल पहले जारी की गई अधिसूचना किसी भी मौजूदा कानून के प्रावधानों को न तो संशोधित या अमान्य करती है, न ही इन प्रावधानों का स्थान लेती है।
पीठ ने कहा कि भारतीय संविधान के संस्थापकों और विधायिका ने अपने साझा विवेक के जरिये हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदायों को हिंदू विवाह अधिनियम के दायरे में रखकर एकता के सूत्र में पिरोया है।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में टिप्पणी की कि जैन समुदाय के दम्पति के मौजूदा मामले में कुटुम्ब न्यायालय के अतिरिक्त अपर प्रधान न्यायाधीश के लिए कानून के स्पष्ट प्रावधानों के विरुद्ध अपने विचार और धारणाएं प्रस्तुत करने का कोई अवसर नहीं था।
पीठ ने यह भी कहा कि अगर कुटुम्ब न्यायालय ने इस सवाल पर विचार किया था कि जैन समुदाय के लोगों पर हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधान लागू होते हैं या नहीं, तो वह इस मामले को उच्च न्यायालय भेजकर अदालत की राय जान सकता था।
भाषा हर्ष आशीष
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