जबलपुर: Bride Denied for Relationship on Suhagrat शादी के तीन दिन बाद से पति से अलग रह रही पत्नी की याचिका पर हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए बड़ी बात कही है। कोर्ट ने कहा है कि पति को शरीरिक संबंध के लिए मना करना पति के प्रति क्रूरता है। कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए पत्नी की याचिका को खारिज करते हुए पति को राहत दी है। मामले में सुनवाई हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति अमर नाथ केशरवानी की पीठ में हुई।
Bride Denied for Relationship on Suhagrat दरसअल मामला सतना का है, जहां साल 2024 युवक ने पत्नी द्वारा क्रूरता और परित्याग के आधार फैमिली कोर्ट में तलाक की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। अपनी याचिका में पति ने बातया था कि उसकी शादी 26 मई 2013 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी, लेकिन पहली रात को ही पत्नी ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने से मना कर दिया। यह भी बताया कि वह अपनी पत्नी को पसंद नहीं था। उसकी पत्नी ने अपने माता-पिता के दबाव में शादी की थी। शादी के तीन दिन बाद 29 मई 2013 को पत्नी का भाई उसके घर आया और उसकी पत्नी को परीक्षा में शामिल कराने के लिए अपने साथ ले गया। अगले दिन, जब वह पत्नी को लाने उसके घर गया तो उसके माता-पिता ने भेजने से इनकार कर दिया। तब से उसकी पत्नी वापस नहीं लौटी है।
दूसरी ओर, पत्नी ने आरोप लगाया था कि पति के साथ उसके वैवाहिक संबंध 28 मई 2013 तक बने रहे। उसके बाद पति और उसके परिवार के सदस्यों ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया। ये लोग दहेज के रूप में डेढ़ लाख रुपये और एक ऑल्टो कार की मांग कर रहे थे। उसने दावा किया कि उसकी परीक्षा जून 2013 तक निर्धारित थी, इसलिए वह अपने वैवाहिक घर नहीं जा सकी। इससे उसके ससुराल वाले नाराज हो गए और फिर से दहेज की मांग करने लगे। उसके बाद पति उसे वापस ले जाने के लिए कभी नहीं आया। पत्नी ने यह भी कहा कि वह अपने पति के साथ ससुराल में रहने को तैयार है, लेकिन दहेज की मांग के कारण उसे वैवाहिक संबंधों से अलग कर दिया गया है। इन आधारों पर उसने पति द्वारा दायर तलाक की याचिका को खारिज करने की प्रार्थना की। प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय, सतना ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद तलाक का आदेश पारित कर दिया।
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वहीं, फैमिली कोर्ट के फैसले को महिला ने हाईकोर्ट में चुनौतर दी थी। पत्नी ने कहा कि दहेज की मांग के दबाव और पति और उसके परिवार वालों के द्वारा उसके साथ किए जाने वाले दुर्व्यवहार के कारण वह अपने माता-पिता के साथ रह रही है। उसने स्वेच्छा से पति का साथ नहीं छोड़ा। उधर, पति ने कहा कि उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ दहेज का झूठा मामला दर्ज कराया है। शादी के बाद उसकी पत्नी केवल तीन दिनों के लिए अपने वैवाहिक घर में रही। इसके बाद उसने बिना किसी ठोस कारण के अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया। तब से वे अलग-अलग रह रहे हैं। इसलिए फैमिली कोर्ट का आदेश उचित था।
मामले के रिकॉर्ड और पक्षों द्वारा दी गई दलीलों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि पत्नी ने स्वीकार किया था कि शादी के बाद वह अपने वैवाहिक घर में केवल तीन दिनों के लिए रुकी थी। जब पति के परिवार के सदस्यों ने उसे आने के लिए कहा तो वह वापस नहीं आई। कोर्ट ने यह भी कहा कि उसने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सीधी (म.प्र.) की अदालत के समक्ष इस तथ्य को स्वीकार किया था कि अपीलकर्ता और प्रतिवादियों (पति-पत्नी) के बीच कोई शारीरिक संबंध स्थापित नहीं हुआ था।
कोर्ट ने कहा कि इससे पति का यह कहना साबित हो गया कि पहली रात को अपीलकर्ता (पत्नी) ने प्रतिवादी (पति) के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया था।कोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना पति के प्रति क्रूरता है। कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट हो गया है कि पत्नी अपने ससुराल में केवल 3 दिनों के लिए रही। इस अवधि के दौरान दोनों के बीच शारीरिक संबंध नहीं बने। तब से करीब 11 साल हो गए, पत्नी और पति अलग-अलग रह रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्ष अलग हो गए हैं और दोनों के बीच अलगाव काफी समय से जारी है। ऐसे में फैमिली कोर्ट के फैसले और आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई जरूरत नहीं हैं। कोर्ट ने पत्नी की अपील खारिज कर दी।
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4 hours ago