कपिल शर्मा, हरदा। जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को आजादी के 75 साल बाद भी प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिला। हालात ऐसी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कोई मूलभूत सुविधाएं नहीं है। लिहाजा ग्रामीणों को छोटी-छोटी सुविधा के लिए वंचित होना पड़ा रहा है।
हम बात कर रहे हैं हरदा जिले की हंडिया तहसील के ग्राम कांकड़ादा की, जहां आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी ग्रामीणों को मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी। 2005 में इंदिरा गांधी बांध से हरदा जिले के कई गांव डूब क्षेत्र में आए थे, जिसके चलते उन्हें वहां से विस्थापित कर दूसरे स्थान पर बसाया गया था। जिसमें उँवा, खरदना, कांकड़दा, जामुनवाली भरतार सहित कई गांव शामिल है। इन गांव में आजतक मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी। वर्ष 2005 में तत्कालीन कलेक्टर ने ग्राम कांकडदा को विस्थापित कर दूसरे स्थान पर बसाया था और उस गांव को गोद लेकर उसका नाम कलेक्टर नगर रखा था।
कलेक्टर ने गांव को सारी सुविधा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली थी, लेकिन जैसे ही कलेक्टर का तबादला हुआ उसके बाद से आजतक करीब 18 सालों में एक भी कलेक्टर ने उस गांव की ओर मुड़कर नहीं देखा। जिसके चलते ग्रामीणों को मूलभूत सुविधा के आभाव में जीना पड़ रहा है। आज हमने ग्राम कांकडदा के ग्रामीणों से चर्चा की तो उन्होंने अपनी आपबीती बताई, कि किस प्रकार उन्हें इस जंगल में मूलभूत सुविधा के अभाव में जीना पड़ रहा है। ग्रामीण महिला सरोज ठाकुर ने बताया कि वो 3 वर्षों से अपने पति व सास ससुर के साथ इस झोपड़ी में निवास कर रही है। कई बार प्रशासन को आवास योजना के लिए गुहार लगा चुकी लेकिन आज तक उसे आवास योजना का लाभ नहीं मिल सका और ना ही उज्जवला गैस योजना का लाभ मिला। जिस कारण उन्हें घास-भुस की झोपडी मे रहना पड़ रहा है।
बारिश के दिन में झोपडी से पानी बहकर निकलता है तब उन्हें गीले मे ही रहना पड़ता है साथ ही जरुरी सामान को झोपडी मे ऊपर बांधना पड़ता है। बारिश के दिनों मे महीने मे करीब 20 दिन बिजली भी बंद रहती है जिससे जंगली जानवर व जहरीले कीड़ो से डर बना रहता है। वही अन्य ग्रामीणों का कहना है, कि गांव मे यदि कोई बीमार हो जाता है तो उसके लिए गांव मे एम्बुलेंस भी नहीं आती। बीमार को पक्की सड़क तक करीब 5 किलोमीटर दूर तक ले जाना पड़ता है फिर उसे एम्बुलेंस मिलती है।