#sarkaronIBC24: ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस बेसहारा हो गयी है…ये सवाल लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा हो चला है। क्योंकि बीते दो दशकों तक जिनका सिक्का अंचल में चलता था… वो इस विधानसभा में बुरी तरह हार गए हैं। ऐसे में कुछ महीनों में लोकसभा चुवाव है.. लेकिन हालत ये है। ग्वालियर-चंबल संभाग की चार लोकसभा सीटों पर कांग्रेस की कोई हलचल दिखाई नही दे रही है। ऐसे में बीजेपी तंज कस रही है, तो वहीं कांग्रेस काउंटर कर रही है.. इस बीच जानकर मानते है, कि ये सही बात है। कांग्रेस चंबल में बुरे दौर से गुजर रही है।
मध्य प्रदेश में इस बार बीजेपी ने प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की है। इस बार के चुनाव में राजनीति का केंद्र बिंदु ग्वालियर-चंबल में रहा है। 2018 की तुलना में बीजेपी के प्रदर्शन में सुधार हुआ है। अंचल की 34 में से 18 सीटों पर बीजेपी और 16 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली है। इससे साफ है कि दोनों पार्टियों में कांटे की टक्कर रही है। वहीं, इस बार सबसे अहम बात यह रही है कि जनता बीजेपी-कांग्रेस के कई धुरंधर नेताओं को सबक सिखा दिया है। यानि की जो कांग्रेस के दिग्गज थे… वो चुनाव में बुरी तरह से हार गए। ऐसे में बीजेपी कहती है… कांग्रेस जो कुछ बची कुची है, वो भी इस लोकसभा चुनाव में खत्म हो जाएंगी। वहीं वरिष्ठ पत्रकार कहते है…. मौजूदा जो हालात ग्वालियर चंबल में कांग्रेस के हैं, उससे लगता नहीं कि उसे लोकसभा चुनाव में ज्यादा फायदा मिलेगा। क्योंकि जो उसके बड़े नेता थे वह सब चुनाव हार चुके हैं।
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ग्वालियर-चंबल संभाग में कांग्रेस के पांच बड़े नेता हारे। ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस के पांच बड़े दिग्गज नेताओं को करारी हार मिली है। – भिंड जिले में लहार विधानसभा सीट कांग्रेस का अभेद किला था। यहां से डॉ गोविंद सिंह करीब चार दशक से चुनाव जीत रहे थे, 2023 के विधानसभा चुनाव में वह हार गए। अभी वह नेता प्रतिपक्ष भी थे। – इसके साथ ही कमलनाथ की सरकार में मंत्री रहे लाखन सिंह यादव भी भितरवार सीट से चुनाव हार गए हैं। वह पार्टी के कद्दावर नेता रहे हैं। सिंधिया समर्थक मोहन सिंह राठौर की जीत हुई है। – शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के धाकड़ नेता केपी सिंह चुनाव हार गए हैं। केपी सिंह छह बार के विधायक रहे हैं। पहली बार पार्टी ने उनका सीट बदला था। – पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को भी करारी हाल मिली है। एक समय में इन दिग्गज नेताओं की तूती बोलती थी। अब ये लोग किंग नहीं रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी के कई ऐसे बड़े दिग्गज नेता, जो सालों से अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। कांग्रेस पार्टी की कमान ग्वालियर-चंबल में इन्हीं नेताओं के हाथ में होता था। कांग्रेस के इन सभी दिग्गजों के हारने के बाद ग्वालियर-चंबल अंचल में पार्टी को नेतृत्व करने वाला कोई बड़ा चेहरा नहीं बचा है। अब सवाल है कि इस इलाके में कांग्रेस किसके सहारे बढ़ेगी। तो वहीं कांग्रेस के पुराने नेता ओर पूर्व मंत्री कहते है.. ऐसा नही है, कांग्रेस के दिग्गज चंबल में हारे है, बल्कि बीजेपी के दिग्गज नेता भी चुनाव हारे हैं।
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बहरहाल मध्य प्रदेश की राजनीति में पिछले दो दशक से ग्वालियर चंबल-अंचल में कांग्रेस पार्टी के लिए किंग मेकर की भूमिका निभाने वाले दिग्गज नेताओं की लोकसभा चुवाव में भूमिका क्या होने वाली है.. ये फिलहाल तय नही है। वैसे देखा जाएं तो इन दिग्गज नेताओं के हारने के बाद कांग्रेस पूरी तरह से ग्वालियर-चंबल में हताश और निराश है। हारे नेताओं की ग्वालियर-चंबल में अच्छी पकड़ रही है। यही कारण है कि अबकी बार कांग्रेस पार्टी ने उन्हीं के भरोसे चुनाव लड़ा था। इस बार जनता ने इन्हें ही पैदल कर दिया है। खासकर नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह, जिन्हें पार्टी ने ग्वालियर-चंबल अंचल में यात्रा की कमान सौंपी थी। पार्टी तो दूर अपनी सीट ही नहीं बचा पाए। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है… इस इलाके में कांग्रेस के बड़े नेताओं के हारने के बाद अब ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस का दरोमदार किसके कंधों पर रहेगा।