भोपाल: मध्यप्रदेश में गुरूपूर्णिमा के मौके पर भाजपा ने पहली बार सियासी तौर पर गुरूपूर्णिमा का पर्व मनाते हुए इलाके के धर्मगुरूओं का पूजन और सम्मान किया। कांग्रेस ने इसे संघ का ऐजेंडा बताते हुए पर्व-त्यौहार-धर्म की सियासत करने का आरोप लगाया तो भाजपा ने ये कहकर पलटवार किया कि कांग्रेस, तो सिर्फ और सिर्फ चुनावों के वक्त ही प्रणाम करती है। बड़ा सवाल ये कि सियासी तौर पर गुरूपूर्णिमा मनाने के पीछे पार्टी का असल मक्सद क्या है? और अपने मक्सद में कितना कामयाब रही भाजपा?
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बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा गुफा मंदिर के महंत पंडित रामप्रवेश दास जी का पूजन किया। दरअसल ये गुरु पूर्णिमा पर बीजेपी के गुरु पूजन कार्यक्रम का एक हिस्सा है। शर्मा की तर्ज पर मंडल स्तर तक बीजेपी नेताओं ने मठ, मंदिर के मंहतों, धर्मगुरुओं, समाज के ऐसे लोग जिन्हे लोग गुरु मानते हों उनके पास जाकर उनका पूजन और सम्मान किया। मौजूदा दौर में सवाल उठता है कि आखिर बीजेपी ने गुरु पूर्णिमा पर पूजन की नई परंपरा क्यों शुरु की? क्या पार्टी ऐसे कार्यक्रमों के जरिए हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहती है? क्या ये खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और कोरोना के कारण लोगों की नाराजगी को दूर करने की कोशिश है? क्या इन कार्यक्रमों के जरिए सोशल इंजीनियरिंग पर है बीजेपी की नजर? वैसे बीजेपी का कहना है कि ये हमारी संस्कृति है जबकि कांग्रेस सिर्फ वोट के खातिर प्रणाम करती है।
बीजेपी ने जहां पूरे जोर-शोर से गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया। वहीं, कांग्रेस ने बीजेपी को अवसरवादी करार देते हुए आरोप लगाया कि बीजेपी ऐसे ही हथकंडों के जरिए लोगों को बरगलाने का काम करती है। कांग्रेस नेताओं ने ये तक कहा कि बीजेपी के सर्वोच्च पद पर बैठे नेताओं ने आडवाणी को अपना गुरु बताया था लेकिन आज गुरु पूर्णिमा के मौके पर उनका तिरस्कार कर दिया गया है।
दरअसल बीजेपी का गुरु पूजन का कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की उस परंपरा की तरह है जब साल में एक बार स्वयंसेवक अपने गुरु को गुरु दक्षिणा के तौर पर कुछ राशि देते हैं। मुमकिन है कि ऐसे कार्यक्रमों के जरिए बीजेपी खुद पर कॉरपोरेट कल्चर का ठप्पा लगने से बचना चाहती हो।