#sarkaronibc24: भोपाल। भारत की चुनावी राजनीति के बारे में अक्सर एक बात कही जाती है.. कि जातियों को साध लो… अगर जातियों को साध लिया तो चुनाव में जीत पक्की है…बात अगर ग्वालियर चंबल अंचल की करें तो यहां की राजनीति में जाति की सियासत की जड़े बेहद गहरी हैं.. यहां की गुना सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी प्रत्याशी हैं.. उनके चुनाव प्रचार में इसका असर साफ देखने को मिल रहा है… वो अब तक 36 जातियों के कार्यक्रम में हिस्सा ले चुके है और हर जाति के साथ अपना पारिवारिक रिश्ता जोड़ रहे हैं…
ग्वालियर रिसासत के महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया.. ग्वालियर चंबल अंचल की सियासत को बखूबी समझते हैं.. ये मध्यप्रदेश का वो इलाका है जहां जातिवाद की जड़े बेहद गहरी हैं… यहां अगर जातियों को साध लिया तो चुनाव जीतना कोई बड़ा खेल नहीं.. सिंधिया अब तक 36 जातियों के कार्यक्रमों में शामिल हो चुके हैं और सिंधिया परिवार का उन जातियों से पीढ़ियों का रिश्ता जोड़ चुके हैं… हाल ही में उन्होनें अदिवासी, लोधी और कुशवाह, समाज के सम्मेलन में शिरकत की है…
चुनाव की घोषणा से पहले ही सिंधिया गुना में सक्रिय हो चुके थे… उन्होंने विभिन्न जतियों के सम्मेलनों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था… इसकी एक वजह ये भी है कि सिंधिया जानते हैं कि किसी भी जाति की अनदेखी महंगी पड़ सकती है… ऐसा माना जाता है कि पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें यादव समाज का साथ नही मिला था… जिसके चलते उनकी हार हुई थी.. चलिए एक नजर डालते हैं कि सिंधिया जतियों को साधने के लिए कहां-कहां जा चुके हैं…
ग्वालियर में जाट, साहू, कलचुरी, वैश्य, जैन, सिंधी और आदिवासी समाज के सम्मेलन में हिस्सा लिया… शिवपुरी में तेली, राठौर, साहू, बाथम, मांझी, ढीमर, केवट, कश्यप, निषाद, वैश्य और जैन समाज की सभा में हिस्सा लिया.. कोलारस में रावत, मीणा, और यादव समाज के लोगों से मिले.. गुना में ब्राह्मण और वाल्मीकि समाज की सभा के बाद अशोकनगर में कोरी और जैन समाज की सभा में शामिल हुए.. मुंगावली में बंजारा समाज, अशोकनगर में कुशवाह समाज से मिले।..
एक तरफ सिंधिया अपनी जीत पक्की करने के लिए जातियों को साध रहे हैं… तो वहीं कांग्रेस उन पर तंज कर रही है… दूसरी ओर बीजेपी का साफ कहना है कि बीजेपी सभी वर्गों की पार्टी है और सबको साध लेकर चलने में विश्वास रखती है…
भारत में चुनाव लड़ रही कोई भी पार्टी जातिगत समीकरण की कभी अनदेखी नहीं करती और टिकट देते समय इसका पूरा ध्यान रखा जाता हैं… सिंधिया पिछले लोकसभा चुनाव में इसका नुकसान उठा चुके हैं… हालांकि उनकी ये कोशिश कितनी कामयाब होती है.. ये तो 4 जून को आने वाले नतीजों से ही साफ हो पाएगा….
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